गुलाब की खेती से बदलें किस्‍मत

दुर्गेश मिश्र
इजाहर-ए-मोहब्‍बत का जिरया, किव की कल्‍पा या शायर की शायरी में अहम स्‍थान रखने वाला फूलाें का राजा गुलाब अपनी विभिन्‍न रंगों व िदलकश खुशबू के चलते देश, धर्म जाति से ऊपर उठकर सबके दिलों पर राज करने वाले इस फूल की खेती देश व विदेश में निर्यात के लिए बेहतरीन है। इसकी महत्‍ता केवल सौंदर्यबोध तक ही सीमित न रह कर आर्थिक स्‍तर पर भ्‍ाी व्‍यापक रूप धारण कर चुकी है। इसके फूलों की खुशबू से सुवाषित तेल, इत्र, गुलाबजल, गुलकंद, अगरबत्‍ती आदि बनाए जाते हैं, जिनकी बाजार में काफी डिमांड है। गुलाब की सुगंध से बने तेल की कीमत अंतरराष्‍ट़़रीय बाजर में 3 से पांच लाख रुपये प्रति किलोग्राम है। इसकी खेती उत्‍तर प्रदेश के हाथरस, एटा, कन्‍नौज, फर्रुखाबाद, कानपुर, वाराणसी, गाजीपुर बलिया और सिकंदरपुर, बाराबंकी। राजस्‍थान के उदयपुर, चित्‍तौडगढ, जम्‍मू-कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब सहित देश के कई राज्‍यों में की जाती है। जहां कन्‍नौज गुलाब का इत्र बनाने के िलए प्रसिद्ध है वहीं गाजीपुर प्‍लािस्‍टक्‍स के गुलाबों में प्राकृतिक गुलाब की खुशबू भरने व गुलाबजल बनाने तो बलिया जिले का सिकंदरपुर गुलरोदन के तेल व गुलाब की खुशबुओं वाले साबुन बनाने के के लिए अपनी अलग पहचान रखता है। विशेषज्ञों के मुताबिक गुलाब की कुल 34 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें मुख्‍यत: रोजासेंटी फोलियाएल, रोजामास्‍केटा हार्क, रोजादमिशना मिल, रोजावारवोनियाना डेस्‍प-एडवर्ड गुलाब ही सर्वोत्‍तम हैं।
फूलों के प्रित आए दिन बढ रहे लोगों के रुझान और इससे बनने वाली तरह-तरह के सौंदर्य प्रसाधनों ने इसकी खेती में राेजगार के अवसर पैदा िकए हैं। पहले फूल मात्र देवी-देवताओं को चढाने और पूजा-पाठ के साधन हुआ करते थे। लेकिन, अब बदलते परिवेश में फूलों का प्रयोग शादी-िववाह, शुभ कामना, प्रणय निवेदन आदि में किया जा रहा हैा और तो ओर इसकी सुखी पंखुडियों को सिब्‍जमशालों को सुगंिधत करने के िलए भी प्रयोग िकया जा रहा है। मध्‍यकाल में गुगल बादशाह इस फूल का इस्‍तेमाल इजहार-ए-मोहब्‍बत के िलए किया करते थे। इत्र का आविष्‍कारक मानी जाने वाली नूरजहां को यह फूल अपनी दिलकश सुगंध के कारण बेहद  पसंद था। कुछ लोग इसे प्रेम का प्रतीक भी मानते हैं। यानी सब मिलाकर गुलाब के फूल की खेती घाटे का सौदा नहीं है।

कितनी हैं प्रजातियां
भारत में गुलाब की कुल 34 प्रजातियां प्रचलन में हैं। इसमें सुगंध की दृष्‍िट से कुल चार प्रजातियां ही उपयुक्‍त हैं, िजनमें सीमेप लखनऊ द्वारा विकसित प्रजाती नूरजहां और रानी साहिबा है। दूसरा आईएचवीटी पालमपुर हिमाचल प्रदेश द्वारा विकसित प्रजाित ज्‍वाला और हिमरोजी है। इनमें नूरजहां, रानी साहिबा और ज्‍वाला की प्रजातियां समशीतोष्‍ण क्षेत्रों अर्थात मैदानी भागों के लिए उपयुक्‍त हैं। जबकि, हिमरोजी केवल शीतोष्‍ण क्षेत्रो पहाडी इलाकों के लिए हैं।

खेती के लिए उत्‍तम जलवायु व जमीन
कृषि विभाग के ऑर्टिकल्‍चर ऑफिसर राजवीर सिंह के मुताबिक गुलाब की खेती के िलए मैदानी ओर पहाडी भागों में चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई मिटटी जिसका पीएच मान 7.0 से 8.5 है में सफलता पूर्वक की जा सकती है।
कैसे करें नर्सरी की तैयारी
गुलाब की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी पर विशेष ध्‍यान देना पडता है। ऑर्टिकल्‍चर अधिकारी के मुताबिक इसकी नई पौध के लिए दिसंबर में कटाई-छंटाई के समय प्रतिवर्ष फूल देने वाले पौधे से पेंसिल के आकार की मोटाई वाले 15 से 20 सेमी लंबे 5-6 आंखों वाला एक साल पुरानी शाखाओं को कलम कर तैयार करें और इसकी गड्डी बनाते हुए 200 पीपीएम, आईबीए हार्मोन्‍स में डुबोकर 20-25 दिन के लिए मिट्टी में दबा दें। इसके बाद इन कलमों से जडें निकलनी शुरू हो जाती हैं। िफर 10 गुणे 15 सेमी कीदूरी पर इनकी नर्सरी लगा दें। अब गुलाब के पौधों की यह कलम जुलाई से अगस्‍त में रोपाई के िलए तैयार हैं।

इस तरह करें रोपाई
फलों की नर्सरी तैयार होने के बाद अब बारी आती है इनके रोपाई की। यदि इनकी रोपाई में पारंपरिक तरिकों की बजाए वैज्ञानिक तौर तरीकों को अपनाया जाए तो ज्‍यादा बेहतर होगा। गुलाब के पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्‍त या अक्‍तूबर-नवंबर में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रत्‍येक पौधे में 1 गुणे 1 मीटर का फासला  रखते हुए 0.5 घनमीटर के गड्ढे खोदें और इन गड्ढों में 2 से 5 किलो पुरानी गोबर की खाद और 5 से 10 ग्राम फोरेस्‍ट या फ्यूराडान डालकर भरने के बाद पौधों की रोपाई कर दें।
खाद और सिंचाई
अच्‍छी पैदावार के िलए समय पर खाद और फसलों की सिंचाई आवश्‍यक है। इसके लिए गुलाब के एक हेक्‍टेयर फसल में 15.20 गोबर की खाद, 90 किलोग्राम नाईटरोजन, 60 किलाग्राम पोटास व इतनी ही मात्रा में फासफोरस की आवश्‍यकता होती है। इनमें पोटास कलमों के राेपाई के समय, जबिक नाइटरोजन को पौधों की रोपाई के डेढ माह बाद दी जाती है। ऑर्टिकल्‍चर आॅफिसर कहते हैं िक गुलाब की फसल में पहले साल 7 से 8 बार सिंचाई की आवश्‍यकता पडती है। खासतौर से कलियों के निकलने, फूलों के खिलने और झाडों की कटाई-टाई के समय जमीन में नमी रखना आवश्‍यक होता है। साथ ही खरपतवार से बचाने के िलए िकसान को चाहिए िक वह साल में चार'पांच बार निराई अवश्‍य करें। इसके लिए पौधों की रोपाई से पूर्व 1-2 किलोग्राम सिमाजीन का छिडकाव िकया जाता है। गुलबाब के पौधों को रोगों से बचाने के लिए कटाई-छंटाई के तुरंत बाद आक्‍सीक्‍लोराइड का लेप व बाविस्‍टीन कवकनाशी का प्रयोग किया जाता है। पौधों को झुलसा, धब्‍बा आिद रोगों से बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत मैकोजेब का छिडकाव करना चाहिए।
 झाड.ों की कटाई
काट'छांट पौधों के पुष्‍पित एवं पल्‍लवित होने के िलए आवश्‍यक है। इससे पौधों में फूल आने की मात्रा को बढाया जा सकता है। इसके िलए मैदानी भागों में दिसंबर एवं पहाडी भागों में अक्‍तूबर से नवंबर का महीना झाडों के काट-छांट के िलए अच्‍छा रहता है। ऑर्टिकलचर अधिकारी के मुताबिक समशीतोष्‍ण क्षेत्रों में पौधों को जमीन से 20 से 30 सेमी छोडते हुए छंटाई करनी चाहिए। डाइबैक रोग से बचाव के लिए कटाई के तुरंत बाद पौधों में आक्‍सीक्‍लोराइड का लेप लगाना चाहिए।

फूलों की चुनाई का समय
किसान भाईयों के इतने परिश्रम के बाद अब बारी आती है उसका मेहनताना वसूल होने का। यानी, गुलाब के खिले खुबसूरत फूलों के चुनाई का। इसके लिए कास्‍ताकार को चािहए िक वह सुबह 7 बजे से पहले-पहले फूलों की चुनाई करलें। नहीं तो दिन चढ.ने के बाद फूलों का वजन कम हो जाता है। अधिक देर तक इन फूलों को तरो-ताजा रखने के लिए चुनाई के बाद छाया में रखना चाहिए या फिर फूलों की डंडियों को चीनी मिले पानी में रखने से अधिक देर तक ताजी रहती हैं।


जिला ऑर्टिकल्‍चर िवभाग से कर सकते हैं संपर्क

फूलों की खेती करने के चाहवान किसान अपने जिला ऑर्टिकल्‍चर बागवानी विभाग से संपर्क कर सकते हैं। इच्‍छुक िकसानों को िवभाग प्रशिक्षण के साथ-साथ कम व्‍याजदर पर ऋण भी उपलब्‍ध करवाता है। इसके अलावा खेती के िलए फूलों की पौध भी उपलब्‍ध करवाता है।कुछ शहरों में फूलों खेती को बढावा देने के िलए इसकी बकायदा मंडी भी है।