दरक गए गांधी के सपने
महात्मा
गांधी के निर्देश पर आचार्य जेबी कृपलानी जीवत राम भगवानदास कृपलानी ने
1920 में सबसे पहले उत्तर प्रदेश के वारणसी के लिबर्टी ग्राउंड में श्री
गांधी आश्रम की स्थापना की थी। इसके पीछे उनका एक ही उद्देश्य था कि खादी
के कपड़े व चरखें कोभुखमरी व गरीबी के खिलाफ हथियार बनाया जाए। इससे
बेराजगारों को रोजगार दिया जाए। उस समय महात्मा गांधी व उनकी विचारधारा से
जुड़े लोगोंसपना साकार तो हुआ। गांधी का चरखा अंग्रेजों के खिलाफ देश की
आजादी में कारगर हथियार तो बना लेकिन आज करीब सौसाल पूरा होने से पहले ही
उनका यह सुनहरा सपना धूल में मिलता हुआ दिखाई दे रहा है।
महात्मा
गांधी व जेबी कृपनाली जैसे उन तमाम नेताओंव आचार्यों का जिन्हों दरिद्र
नारायण की सेवा का संकल्प लिया था, को तिनका-तिनका बिखेरने में कोई और
नहींगांधी व खादी के रहनुमाओं ने ही कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है। हालात यह है
कि लाखों हाथों को रोजगार देने वाले गांधी आश्रम के हजारों कार्यकर्ताव
इससे जुड़े लोग मामूली वेतन पर काम करने को मजबूर हैं या दूसरे शब्दों में
कहें तो भुखमरी के कगार पर खड़े हैं। गांधी आश्रम की कई ऐसी इकाइयों में
वर्करों के वेतन के लाले भी पड़े हैं। संस्था के मंत्री या महामंत्री से जब
इसका कारण पूछा जाता है तो वह बिना किसी लाग लपेट के सीधे तौर पर केंद्र व
राज्य सरकार की नीतियों को दोषी ठहराते हैं, लेकिन वे अपनी नीति व
कार्यप्रणाली को सुधारने की तरफ ध्यान नहीं देते।
श्री गांधी
आश्रम के नाम से 1928 में पंजिकृत हुई इस संस्था का पहला मुख्यालय उत्तर
प्रदेश के मेरठ की ऐतिहासिक लालकोठी में खोला गया, जिसका मौजूदा समय में
कैंप कार्यालय 9 शाहनजफ रोड लखनउ में है और प्रधान कार्यालय के रूप में
जाना जाता है। बीतते समय और सुविधा के अनुसार आज गांधी आश्रम की उत्तर
प्रदेश, बंगाली, मध्यप्रदेश, पंजाब व जम्मू-कश्मीर सहित करी 40 से अधिक
विकेंद्रित ईकाइयां हैं। लेकिन इन सभी ईकाइयों में कमोबेश एक ही हाल है।
श्री गांधी आश्रम की एक ऐसी ही विकेंद्रीत ईकाई का मुख्य कार्यालय पंजाब
के अमृतसर जिलेमें क्वींस रोड पर स्थित है। गांधी विचारधारा से जुड़े
स्वतंत्रता सेनानी रामसुमेर उपाध्याय ने अपने सहयोगियों के साथ 1950 श्री
गांधी आश्रम कश्मीर के नाम से संस्था का पंजिकरण कराया जिसका बाद में 1968
तके अमृतसर में मुख्य कार्यालय बनाया गया। शुरूआती दिनों में हीं पंजाब में
करीब तीन सौ कत्तिन-बुनकर व वर्करों को रोजगार मिला। यही नहीं आतंकावाद के
दौर में भी पंजाब व जम्मू-कश्मीर बेघर बेरोजगार लोगों को रोजगार मिलता
रहा।
कभी सर्जिकल मैन्यूफैक्चरिंग था, आज बिक गया कारखाना
गांधी
आश्रों के लिए इसस ेबड़ा दुर्दिन और क्या होगा कि जिस सर्जिकल
मैन्यूफैक्चरिंग छेहरटा में 1969 में करीब 300 कर्मचारी चार शिफ्टों में
दिनरात काम करते थेवही कारखाना आज टुकड़ों-टुकड़ों में बिक गया। उस समय गांधी
आश्रम केइस कारखाने ने काम ने वाले वर्कर शिवशंकर सिंह, मुरली धर सहित कई
अन्य लोगों ने बताया कि तब गढ़वाल के रहने वाले कैलाश चंद्र पांडे पहले
मैनेजर और रामसुमेर उपाध्याय पहले सेके्रटरी हुआ करते थे। यहां के बने
काॅटन, बैंडेज ‘पट्टी‘ पूरे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सप्लाई
होती थी। संस्था के सेवानिवृत्त कर्मचारी रामकुवंर चैहान कहते हैं कि उस
गांधी आश्रम ने यह फैटरी 1968-69 मेंअमृतसर के पीएन भाटिया व एनएन भाटिया
से खरीदा था। करीब 1973 में महेश चंद्र तिवारी को संस्था का ंत्री बनाया
गया और 1974 में मैन्यूफैक्चरिंग बंद कर इसे उत्पादन केंद्र बना दिया गया।
यही महेशचंद्र तिवारी बाद में चल कर गांधी आश्रम प्रधानकार्यालय लखन के
महामंत्री बनाए गए। महेश चंद्र तिवारी के नेतृत्व यहां पर कताई, बुनाई व
नमदा उत्पादन का काम चलेन लगा। यहां के बने शाॅल, कंबल, लोई, नमद, गब्बा व
स्वेटर न केवल पंजाब व कश्मीर में ही लोकप्रिय हुए बल्कि देश भर के लोग
इसके मुरीद हो गए । चैहान कहते हैं कि यह गांधी आश्रम का गोल्डन पीरियड था।
यह दौरा था 1980 का उस समय करीब 600 कत्तीन व बुनकरों कोअकेले पंजाब में
रोजगार मिला हुआ था। इसके बाद 1994-95 में एनएमसी चरखा आया जिससेउनी खादी
के काम में नई क्रांति आई और इसी साल संस्था के सालाना आॅडिट में 14.50 लाख
रुपये लाभ बैलेंश सीट बनी थी। इसके बाद गांधी आश्रम निरंतर घाटे में चलता
रहा और हालात यह हुए कि वर्ष2018 की पहली तीमाही में ही छेहरटा स्थित
उत्पादन केंद्र की करीब 20,000 गज जमीन करीब 12 करोड़ रुपये में बिक गई और
एक झटके में गांधी आश्रम के कर्मचारी अनाथ हो गए व दरिद्रनारायण की सेवा और
हजारों हाथों को रोजगार देनेका महात्मा गांधी का सपना मिट्टी मे मिल गया।
आतंकवाद के दौर में भी नहीं रुका था चरखा
संस्था
के पूर्व व कुछ वर्तमान कर्मचारियों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर
बताया कि 1984 का वह दौर था जब पंजाब आतंकवाद की आग में झुलस रहा था। लोग
घर से बेघर हो विस्थापित हो रहे थे। आतंकवाद के कारण लोगों रोजगार छिन रहा
था ऐसे दौर में श्री गांधी आश्रम ने 2500 कत्तिन व बुनकरों को रोजगार के
साथ मुहैया करवाए। यही नहींसंस्था का कताई केंद्र पंजाब के अलावा
जम्मू-कश्मीर, हरियाणा तक फैला हुआ था, लेकिन अब स्थिति यह हे कि हरियाणा व
जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि पंजाब के सभी कताई केंद्र बंद हो गए ।
कत्तिन-बुनकर बेरोजगार होगए। और तो और संस्था के खुद के कई खादी भंडार भी
बंद हो गए। संस्था के कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिस संस्था में कभी 300
से अधिक वर्ककर काम करते थे आज उसी संस्था में लखनउ के सरोजनी नायडूमार्ग
स्थित उनी स्टोर से लेकर पंजाब व जम्मू-कश्मीर में महज 36 वर्कर काम कर
रहेहैं। वह भी संस्था में सालों गुजारने के बाद महज 10 से 15 हजार रुपये के
मासिक वेतन पर। गांधी आश्रम का जो चरखा आतंकवाद के दौर में भी नहीं रूका
था व गांधी आश्रम के तथाकथित रहनुमाओं की गलत नीतियों की वजह से कबाड़के भाव
बिक गए और कताई बुनाई का काम खत्म हो गया।
काम न आई खादी कमीशन की 75 लाख की संजीवनी
गांधी
आश्रम के पूर्व कर्मचारी मुरली धर व रामकुंवर चैहान आदि का कहना है कि
संस्था की स्थिति को सुधारने व नई मशीनरी खरीदनेके लिए खादी कमीशन मुंबई की
तरफ से कुल एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी गई थी। इसमें 25 लाख रुपये
संस्था को लगाने। इस तरह की आर्थिक सहायता उत्तर प्रदेश के कई गांधी
आश्रमकों को भी दी गई थी। चैहान का कहना है कि इस सरकारी सहायता से गांधी
आश्रम गोलघर गोरखपुर, सहारनपुर कई अन्य बीमार संस्थाओं का न केवल उत्पादन
बढ़ा बल्कि उनके काम का तरीका बदला, संसाधन बढे और उनकी आर्थिक स्थिति भी
सुदृढ़हुई। जबकि गांधी आश्रम अमृतसर में इस ग्रांट का जम कर तत्कालीन
प्रबंधकों द्वारा दुरूपयोग किया। हालत यह हुए कि संस्था खादी कमीशन चंडीगढ
सहित कई बैंकों की कर्जदार हो गई। नौबत यहां तक आ गई गांधी आश्रम के
कर्मचारियों को वेतन मिलना भी बदं हो गया। इसी दौरान इस दौरान क्षेत्रीयों
आडिटरों द्वारा संस्था के कार्यकलापों पर आपत्ति भी जताई गईलेकिन इस तरफ
कोई ध्यान नहीं दिया गया, नतीजतन गांधी आश्रम का क्षरण लगातार जारी रहा जो
आज भी है। वे कहते हैं कि एक बार गांधी आश्रम के कार्यक्रम में तत्कालीन
श्री अटल बिहारी वाजपेई सरकार में खादी एंव ग्रामोद्योग मंत्री संघप्रीय
गौत आए थे। उन्होंने संस्था हालत देख कर कहा था कि अमानत नहीं खयानत
खाओखुशहाल रहोगे, लेकिन संस्था के रहनुमा अमानत ही खा गए। अब मौजूदा स्थिति
सबके सामने है।
नरसिंम्हा राव सरकार ने भी दी थी सहायता
श्री
गांधी आश्रम अमृतसर के क्षेत्रीय कार्यालय में लंबे समय तक कैशीयर व
मैनेजिंग कमेटी के सदस्य रहे रामकुवंर चैहान कहते हैं कि इससे पहले195-96
में तत्कालीन नरसिंम्हा राव सरकार ने खादी कमीशन के मार्फत गांधी आश्रम
अमृतसर को 4 प्रतिशत की ब्याज दर से 2 करोड़ रुपये का लोन दिया था। तब
मनमोहन सिंह बित्तमंत्री हुआ करते। लेकिन इस ऋण से भी गांधी आश्रम की हालत
नहीं सुधर सकी। चैहान कहते हैं कि दिसंबर 2012 में श्री गांधी आश्रम पर
अमृतसर के चैक फरीद स्थित इंडियन बैंक की ब्रांच का करीब 1.64 करोड़ लोन था
जो बढ़ कर दो करोड से अधिक का हो चुका है।
मैनुफैक्चरिंग बिकने बाद भी नहीं सुधरे हालात
लंबे
समय से कार्यकर्ताओं का वेतन, बैंक व खादी कमीशन का लोन, कार्यकर्ताओं के
प्राॅविडेंट फड्स व रिटायर्ड हो कर जा चुके वर्करों का हिसाब क्लीयर न कर
पाने का दवाब झेल रहेश्री गांधी आश्रम अमृतसर के प्रबंधकोंकाॅलोनाइजारों के
हाथोकरीब 12 करोड़ में मैन्यूफैक्चरिंग की 20,000 गज जमीन बेच दी। 6.50
करोड़ खादी कमीशन, 2.65 करोड़ बैंक व शेष रूपयों का भुगतान क्षेत्रीय
प्राॅवीडेंट कार्यालय कमिश्नर, कार्यकर्ताओं का बकाया वेतन व अन्य मद में
भुगतान कर दिया। यानी प्राॅपर्टी बेचने के बाद भी पैसे पूरे नहीं हुए। यानी
स्थिति पहले वाली ही है। न उत्पादन हैन बिक्री और तो और मशीनरी भी हाथ से
निकल चुकी है।
सारी पूंजी उधारी में फंस चुकी थी
मैन्यूफैक्चरिंग
बेचने की नौबत क्यों आई । इसके जवाब में संस्था के वर्तमान सेक्रेटरी
रामसूरत यादव का कहना है कि इसमें सबसे बड़ा कारण फंसफ्लो का अर्था त
वर्किंग कैपिटल का एंसिप्लेंट सरप्लस होता चला गया, लाइबिलटी अढ़ती चली गई।
ब्याज बढ़ता चला गया। लोन बढ़ता चला गया। देनदारी बढ़ती चली गई। जो लोन 1.65
वह 1.83 पहुंच गया। ब्याज 3 लाख साढे तीन लाख बढता गया। लाइबिलटी 11 करोड
के करीब बन गई है। यही सब कारण रहे। यह पूछे जाने पर कि इनको चुकाने का
प्रयास क्यों नहीं किया गया। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि
लोन चुकाने का प्रयास नहीं किया गया। इसके कई कारण रहे। यहां की पूरी अर्थ
व्यवस्था सिजनल काम पर आधारित है। शहद का भी काम नहीं चल पाया। करीब 6
करोड़ से अधिक की उधारी फंस गई। इसको नकदी की जगह कपड़े मंगवाने पड़े इसके।
बाद भी 4 करोड़ से अधिक की उधारी फंसी हुईहै। यह पूछे जाने पर कि प्राॅर्टी
बेच कर जो पैसे मिले वह तो उधार चुकाने में ही खत्म हो गए। अब आगेका काम
कैसे होगा। इसपर उन्होंने कहा कि कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा।
इसी
सवाल के जवाब में श्री गांधी आश्रम हजरत गंज लखनउ के मंत्री व गांधी आश्रम
अमृतसर के टृस्टी सदस्य आरएन मिश्रा का कहना है कि कश्मीर में आतंकवाद की
समस्या केकारण उनी माल कश्मीर नहीं जा पाया। इसकी वजह से संस्था के सामने
आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। बैंक व खादी कमीशन का लोन भी था। बैंक ने
संस्था का खाता सीज कर दिया था। जिस कारण खादी कमीशन चंडीगढ से मंजूरी लेकर
उन्हें प्राॅपर्टी बेचनी पड़ी वैसे भी उनके पास बहुत प्राॅपर्टीहै। यह पूछे
जाने पर की कलस्टर प्रोग्राम का केंद्र सरकार से 75 लाख मिलने व बड़ा
कारोबार होने के बावजूद यह स्थिति क्यों आई। इसपर उन्होंने कहा कि यह उनका
मैटर है मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता। इसके बाद उन्होंने फोन बंद कर दिया।
यह उनका मैटर है
लखनउ
के शहनजफ रोड स्थित संस्था के महामंत्री बृजभूषण पांडेय ने कहा कि यह उनका
मैटर है। सभी संस्थाएं स्वतंत्र हैं। उनकोंअपना फैसला लेने का अधिकार।
खादी कमीश्न व बैंकों लोन चुकाना था। इसलिए प्राॅपर्टी बेचनी पड़ी।