जनरल डायर की क्रूरता को करीब से महसू करने वाले दो लोग ऐसे थे जो लाशों की ढेर में जिंदा बच गए थे। उनमें से एक थे ऊधम सिंह और दूसरा नानक सिंह। इन दोनों ही लोगों ने अपने-अपने ढंग से आजादी की जंग लड़ी। इन में एक सात साल का बच्चा भी था था जो उस समय अपने अब्बू के साथ लुधियाना से अमृतर आया था।
खास बात
1923 में कविता संग्रह 'जख्मी दिल' के प्रकाश के दो सप्ताह बाद ही अंग्रेजों ने लगाया दिया था प्रतिबंध
1934 में जलियांवाला बाग हत्या काडं के 15 साल बाद मंटो ने लिखा था 'तमाशा' नामक कहानी
1945 में पंजाबी नाटक 'हुल्ले हुलारे' के मंचन पर अंग्रेजों ने लगा दी भी पाबंदी, नायिकाओं को भेज दिया था जेल
दुर्गेश मिश्र, अमृतसर
कहा जाता है कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार में जनरल डायर की क्रूरता को करीब से महसू करने वाले दो लोग ऐसे थे जो लाशों की ढेर में जिंदा बच गए थे। उनमें से एक थे ऊधम सिंह और दूसरा नानक सिंह। इन दोनों ही लोगों ने अपने-अपने ढंग से आजादी की जंग लड़ी। इन में एक सात साल का बच्चा भी था जो उस समय अपने अब्बू के साथ लुधियाना से अमृतर आया था।
यह बच्चा कोई और नहीं उर्दू के प्रसिद्ध कहानीकार सआदत हसन मंटो था। जो अपने वालिद की गोद में बैठे आसमान में उड़ते तैयारे को देख उनसे तरह-तरह के सवाल कर रहा था। आगे चल कर नाकक सिंह और सआदत हसन मंटो ने कलम तो उधम सिंह ने रिवाल्वर से गोरी हुकूमत को जवाब दिया था।
खूनी बैसाखी से तमाशा तक
वैसे तो नानक सिंह का जन्म अविभाजित भारत के झेलम जिले में हुआ था। जिस समय जलियांवाला बाग में रालेट एक्ट का विरोध कर रहे लोगों पर जनरल डायर द्वारा गोलियां चलवाई गईं उस समय नानक सिंह अपने दो दोस्तों के साथ वहां मौजूद थे, जो इस घटना में मारे गए।
डा. सुभाष परिहार के मुताबिक इस घटना ने नानक सिंह को इस कदर झकझोर दिया कि उन्होंने औपनिवेशिक शासन की खिल्ली उड़ाने वाली 'खूनी बैसाखी' नाम से एक कविता लिखी । इस कविता के प्रकाशित होते ब्रिटिश सरकार बौखला गई और 'खूनी बैसाखी' के प्रकाशन व वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद वे अकाली अखबारों के संपादक बने और ब्रिटिश सरकारउ के खिलाफ लिखना शुरू किया । अंग्रेजों ने इसे सरकार के खिलाफ बागावत मानते हुए उन्हें लाहौर की बोरस्टल जेल भेज दिया।
डा: परिहार कहते हैं कि नानक सिंह की कलम यहां भी नहीं रुकी और उन्होंने अपना दूसरा कविता संग्रह, " ज़ख्मी दिल" लिखा। इसमें उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार का उल्लेख किया। यह कविता संग्रह 1923 में प्रकाशित हुआ । इसके प्रकाशन के दो सप्ताह बाद ही अंग्रेजों ने इसे भी प्रतिबंधित कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने जेल में ही रह कर कई अन्य उपन्यास लिखे जो अंग्रेजों को चुभता रहा।
तमाशा
लुधियाना में जन्मे और अमृतसर में पले बढ़े सआदत हसन मंटो ने भी जलियांवाला बाग हत्या कांड पर ' तमाशा' नाम की एक कहानी लिखी। उर्दू के प्रसिद्ध कहानीकार और नाटकर कार मंटो ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के करीब 15 साल 'बाद 1934 में तमाशा' नामक कहानी लिखी थी। यह उनकी पहली प्रकाशित कहानी थी। कहा जाता है कि इसे उन्होंने "खल्क" नामक पत्रिका में छद्म नाम से प्रकाशित किया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड पर आधारित इस कहानी ने भी लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोलने में अहम भूमिका निभाई थी।
हुल्ले हुलारे से हिल गए थे अंग्रेज
कविताओं के अलावा नटकों ने भी अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। बात अगस्त 1945 की है। अमृतसर जिले के गांव चोगावां में पंजाबी नाटक 'हुल्ले हुलारे' का मंचन हुआ था। इस नाटक के मंचन से अंग्रेजी शासन के अफसर इतना डर गए कि उन्होंने इसकी नायिका और सह नायिका को जेल में डाल दिया। इस नाटक की नायिका थी उमा। नाटक हुले हुलारे को शीला भाटिया ने लिखा थाख् जबकि निर्देशक खुद उमा के पिता इंजीनियर गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी थे। बताया जाता है कि नाटक में एक गीत था, जिसके बोल थे 'कड्ड दियो अब फिरंगी नू, समंदरों पार फिरंगी नू...।' इस गीत पर अंग्रेजी सरकार को आपत्ति थी, लेकिन नाटक का मंचन जारी रहा। इससे नाराज अंग्रेजों ने उमा सहित नाटक में काम करने वाली सात लड़कियों को गिरफ्तार कर अमृतसर की जेल में बंद कर दिया। नाटक पर भी पाबंदी लाग दी। उमा का मुकदमा लाहौर कोर्ट में चला, जिसकी पैरवी वकील, लेखक एवं प्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह ने की थी और सभी को रिहा करवाया।
सोहन सिंह भकना, जिन्होंने काटी काला पानी की सजाअमृतसर के क्रांतिकारियों की बात करें तो सरदार सोहन सिंह भकना का नाम पहले आता है। प्रो. दरबारी लाल कहते हैं कि सोहन सिंह दर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और 1915 के गदर षड्यंत्र में शामिल पार्टी के एक प्रमुख सदस्य थे। सोहन सिंह, कोमागाटा मारू घटना के बाद 13 अक्टूबर 1914 को कलकत्ता अब कोलकाता में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें मुल्तान की सेंट्रल जेल भेज दिया गया और बाद में लाहौर षड्यंत्र मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया। सोहन सिंह कि संपत्ति ज़ब्त करने के साथ ही उनको मौत की सज़ा सुनाई गई। बाद में इसे कालापानी सजा में बदल दिया गया और उन्हें 10 दिसंबर 1915 को अंडमान भेज दिया गया। इसके बाद भी उनका अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का
सफर जारी रहा।
सोहन सिंह जोश
अमृतसर जिले के अजनाला तहसील के गांव चेतनपुर के रहने वाले सोहन सिंह जोश का नाम उन 31 क्रांतिकारियों में शामिल था, जिन्हे मेरठ षड्यंत्र का दोषी ठहराया गया था। यह 1929 में ब्रिटिश सरकार के एक विवादास्पद फैसले के खिलाफ किया गया श्रमिकों का आंदोलन था। उस समय सोहन सिंह जोश नौजवान भारत सभा और कीर्ति किसान पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। अंग्रेजों ने इन्हें सरकार से बगावत के जुर्म में मेरठ जेल में बंद कर दिया था।
'एट होम' समारोह में भाग लेकर बाहर निकलते समय गोलियां मार कर हत्या कर दी थी। कर्जन वायली की हत्या के जुर्म में मदन लाल पर मुकदमा चलाया गया और 17 अगस्त 1909 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई थी। मातृ भूमि की रक्षा के लिए मदन लाल का बलिदान युगों युगों तक याद किया जाता रहेगा।