सरहद के पार सिसकती जिंदगी

                   



दुर्गेश मिश्र

करीब एक दशक पहले सत्‍य घटना पर आधारित एक फिल्‍म आई थी 'रामचन्‍द पाकिस्‍तानी'। उर्दू और हिंदी भाषा में बनी यह फिल्‍म सरहद के इस पार और उस पार यानी भारत और पाकिस्‍तान दोनों देशों में एक साथ रीजिल की गई थी। जिसे दोनों देशों के 95 प्रतिशत दर्शकों ने सराहा था। इस फिल्‍म के निर्माता जाबेद जब्‍बार और निर्देश महरीन जब्‍बार दोनों पाकिस्‍तानी थे। जबकि दोनों देशों के लोगों की भावनाओं को छुती इस फिल्‍म की मुख्‍य भूमिका में नंदिता दास, राशिद फारूक, फाजिल हुसैन, मारिया वास्‍ती और नौमान सहित सभी कलाकार भारतीय और पाकिस्‍तानी दोनों देशों के थे। अब आप सोच रहे होंगे कि यहां पाकिस्‍तानी फिल्‍म और उसके कलाकारों का जिक्र करने का क्‍या तुक बनता है।
  यहां बताना चाहूंगा कि रामचंद पाकिस्‍तानी में य‍ह दिखाने की कोशिश की गई है पाकिस्‍तान में सीमा के पास रह रहे एक हिंदू शंकर अपने 8 साल के बेटे रामचंद के साथ कैसे गलती से भारत पाक सरहद को पार कर हिंदुस्‍तान की सरजमी पर कदम रखता है। दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल है और इसी बीच शंकर और उसके बेटे रामचंद को बार्डर पर तैनात बीएसएफ के जवान पकड लेते हैं। और दोनों को कैदखाने में डाल देते हैं जहां दोनो बाप-बेट सजा काटने लगते हैं। और उधर शंकर की पत्‍नी पति और बेटे के बियोग में किन-किन परिस्थितियों से जूझती है।
जी हां कुछ ऐसी ही स्थिति भारत और पाकिस्‍तान की सरहद पर रहने वाले लोगों के साथ होता है। चाहे भारत विभाजन की यह रेखा राजस्‍थान की रेतीली जमीन खिंची गई हो या पंजाब समतल और गुजरात की दलदली जमीन पर। हर जगह कम-ओ-बेस परिस्थितियां एक जैसी ही हैं। चाहे वह पंजाब के तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव का रहने वाले सरबजीत हो या फिर राजस्‍थान के जयपुर जिले के थाना क्षेत्र सामोद के गांव माहरकलां के 65 वर्षीय गजानंद शर्मा। इन दोनों की कहानी एक जैसी ही थी। कोई भैंस चराते हुए शराब के नशें मे अपने देश की सीमा लांघ कर पाकिस्‍तान चला गया तो कोई घर से मजदूरी करने निकला और गलती से सीमापार पाकिस्‍तान की सरहद में दाखिल हो गया। कुछ इसी तरह के हालात सीमा के उस पार भी हैं। वहां से भी कई बार कई लोग कभी फिल्‍मी सितारों से मिलने की चाह में तो कोई बकरियां चराते हुए इसपार आ जाता है।
  उल्‍लेखनीय है कि पाकिस्‍तान ने 14 अगस्‍त 2018 को 30 भारतीय कैदियों को रिहा किया था। इन 30 कैदियों में 27 भारतीय मछुआरे थे और जबकि तीन सामान्‍य कैदी थे जो गलती से पाकिस्‍तान की सीमा में प्रवेश कर गए थे। इनमें एक 65 वर्षीय गजानन शर्मा भी थे। जो अन्‍य कैदियों के साथ वतन तो लौटे लेकिन मानसिक संतुलन खो कर। गजानन शर्मा की कहानी भी फिल्‍म 'राम चंदर पाकिस्‍तानी' की कहानी हूब हू मिलती है। गजानन शर्मा की पत्‍नी मख्‍नी देवी और बेटा मुकेश यहा भारत-पाकिस्‍तान की अंतरराष्‍ट्रीय सीमा आटारी बार्डर पर लेने पहुंचे तो उनकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। ये आंसू एक पत्‍नी का अपने पति से मिने और एक बेटे का अपने पिता को पाने का था वहीं दुख इस बात का था कि उसके पिता पाकिस्‍तान की जेल में मिली यातनाओं से विक्षिप्‍त हो गए हैं। पत्‍नी मख्‍नी और बेटा मुकेश को खुशी इस बात की भी थी कि उसके पिता सर्बजीत होने से बच गए।

  अब 62 वर्ष की हो चुकी गजानन की पत्‍नी मख्‍ानी देवी कहती हैं कि उनका घर राजस्‍थान में भारत पाक सीमा के पास ही स्थित है। उनके पति गजानन शर्मा मजदूरी करते थे। सन 1982 में उनके पति बिना बताए ही घर से निकल गए थे। काफी तलाशा नहीं मिली। उनके जिंदा होने की उम्‍मीद हम खो चुके थे। बच्‍चे छोटे थे। पति के लापता होने के बाद से मैं टूट चुकी थी। पर बच्‍चों की परवरिश के लिए एक लाश बन कर किसी तरह जिंदा थी। इस बीच बच्‍चे बड़े हो गए। उनकी शादी कर करदी। अब घर में बहू और पोते सब हैं। पर इनकी कमी खलती थी। हमने तो अपने खशम की उम्‍मीद ही खो दी थी। इसी बीच एक दिन जयपुर जिले के सामोद थाने से 65 वर्षीय गजानन शर्मा की भारतीय राष्‍ट्रीयता की वेरिफिकेशन के संबंध में पाकिस्‍तान की जेल से दस्‍तावेज आए थे। इसके बाद पुलिस अधिक्षकण्‍ जयपुर ग्रामीण कार्यालय में दस्‍तावेजों के सत्‍यापन के लिए जब बुलाया तो हमें पता चला कि हमारे वो जिंदा हैं। तब उनके भारत आने तक हमें एक एक दिन एक एक साल की तरह लगा। और आज जब वे मिले तो कुछ भी बता पाने में असमर्थ हैं।


टेलीफोन पर निकाह और फंस गया यार
18 साल बाद इसी साल पाकिस्‍तान से लौटे दिल्‍ली के चांदनी चौक निवासी अफजल अहमद की कहानी अन्‍य भारतीय कैदियों से भिन्‍न है। इन्‍हें तो इनकी पाकिस्‍तानी पत्‍नी ने धोखा दे दिया वर्ना ये तो पकडे नहीं जाते। पाकिस्‍तान की कोट लखपत जेल में तीन साल कैद रहने के बाद लौटे अफजल अहमद कहते हैं कि उन्‍होंने 1997 में मशरत कुरैशी नामक एक पाकिस्‍तानी महिला से 1997 में टेलीफोन पर निकाह किया था। सितंबर 2004 में वह पत्‍नी से मिलने के लिए एक माह का वीजा ले कर दिल्‍ली-लाहौर बस से पाकिस्‍तान चला गया और भूमिगत हो गया। कुछ समय बाद उसकी पत्‍नी मशरत अपने परिजनों के साथ इंगलैंड चली गई और वह वहीं पाकिस्‍तान में ही रह गया। इस बीच उसकी पत्‍नी साल में तीन चार माह के लिए बीच-बीच में आती रही। 2015 में वह उससे मिलने नहीं आई और उसने इंगलैंड से ही मैसेज कर दिया कि अब वह उससे मिलने नहीं आएगी। इसी साल उसे पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी के सदस्‍यों ने लाहौर में गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने उसे चार माह की सजा सुनाई जो 2016 में पूरी हो गई। तबसे वह लाहौर की कोटलखपत जेल में बंद था।

इश्‍क ने बना दिया कैदी

बीते साल 18 दिसंबर को पाकिस्‍तान की जेल से करीब 6 साल बाद छूटा भारतीय कैदी हामिद निहाल अंसारी जब बाघा बार्डर पर हिंदुस्‍तान की सरजमीं पर कदम रखा तो वतन की मिट़्टी चूम कर वह फूट-फूट कर रोने लगा। कुछ यही हाल इधर बेटे को लेने मुंबई से आई हामिद के अब्‍बू, अम्‍मी और भाई का भी था। पेशे से असिस्‍टेंट प्रोफेसर हामिद करीब छह साल पहले पाकिस्‍तानी लडकी के प्रेम में फंस कर अफगानिस्‍तान के रास्‍ते पख्‍तुनख्‍वाह गया, जहां उसे पकड़ लिया गया। उसके खिलाफ पाकिस्‍तानी दस्‍तावेजों पाक में जासूसी करने का आरोप लगाया गया। इसके बाद उसे पाकिस्‍तानी सैन्‍य अदालत ने तीन साल कैद की सजा सुना दी। हामिद के परिजनों के मुताबिक हामिद निहाल के पास मैनेजमेंट साइंस की डिग्री है। उसके पाकिस्‍तान में गिफ्तारी की खबर मिलने से कुछ दिन पहले वह मुंबई के एक कॉलेज में प्रवक्‍ता की नौकरी शुरू की थी। निहाल की मां फौजिया जो मुंबई के ही एक कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर हैं, वह कहती हैं उन्‍हें उम्‍मीद नहीं थी कि उनका जिगर का टुकडा हिंदुस्‍तान लौटेगा। वे कहती हैं यदि दुनिया के कुछ बुरे देशों का नाम लिया जाए तो पाकिस्‍तान भी उनमें से एक है। फौजिला कहती हैं कि हामिद पाक के खैबर पख्‍तुनख्‍वाह प्रांत के भोहाट इलाके की किसी लड़की से फेसबुक पर बात करता था और वहां जाना चाहता था। उन्‍होंने उन्‍हों बेटे को समझाया भी था लेकिन उसने यह गलत कदम उठा लिया।


सरबजीत को पाकिस्‍तान ने बना दिया था आतंकी

उल्‍लेखनीय है करीब 33 सालों तक पाकिस्‍तान की जेल में कैद रहे पंजाब के तरनतारन जिले के सरबजीत सिंह की साल 2013 में पाकिस्‍तान की कोटलखपत जेल में हत्‍या कर दी गई थी। सरबजीत की रिहाई प्रयास से लेकर कर मौत तक की खबर ने उस समय दुनिया भर के देशे का ध्‍यान खींचा था। सरबजीत भी शराब के नशे में गलती से 30 अगस्‍त 1990 को भारतीय सीमा लांघ कर पाकिस्‍तानी सरहद में चला गया था। जहां उसे भारतीय जासूस करार और पाकिस्‍तान में बंम विस्‍फोट कराने का दोषी करार देते हुए वहां की आदलत ने 1991 में उसे मौत की सजा सुनाई थी। हलांकि पाकिस्‍तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी और सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने इस सजा के खिलाफ पाकिस्‍तानी कोर्ट में केस भी लडा था। यही नहीं सरबजीत के जीवन पर 'सरबजीत' नाम की फिल्‍म भी बनी थी इसमें ऐश्‍वर्या रॉव व दिपेंद्र हुड्डा ने अभियनय किया था।

 पाक कैदियों की भी यही कहानी
कुछ इसी तरह की दास्‍तान भारत की विभिन्‍न जेलों से रिहा हुए पाकिस्‍तानी कैदियों की भी है। उनका भी गांव भारत की सीमा से सटा हुआ है। भारत की जम्‍मू जेल से सजा पूरी कर छूटे मोहम्‍मद इतेहाद, नवाज अली और अमृतसर जेल से छूटे शहजाद ने कहा कि वे लोग गलती से सीमा पर कर भारत आए गए थे। यहां उन्‍हें बीएसफ जवानों ने पकड लिया था। उन्‍होंने कहा कि हमारे उधर यहां की तरह कटिंली तारें नहीं है। डंगर (पशु) चरा रहे थे कि अचानक तार के पास भारतीय सीमा में दाखिल हो गए। पकड़े जाने पर उन्‍हें अहसास हुआ कि वे भारतीय सीमा में आ गए हैं। इसी तरह गुजरात जेल से रिहा हुआ मोहम्‍मद ने बताया कि वह समंदर में मछली पकडते हुए भारतीय सीमा में कब दाखिल हुआ उसे पता नहीं चला। समंदर में गश्‍त कर रहे भारतीय सुरक्षा बलों ने जब उसे पकड़ लिया।
बता दें कि दोनों देशों के कैदियों को हर साल 14 और 15 अगस्‍त को अपनी रिहाई का इंतजार रहता है। क्‍योंकि 14 अगस्‍त को पाकिस्‍तान अपना स्‍वतंत्रता दिवस मनाता है तो 15 अगस्‍त को भारत सरकार। इस दिनों दोनों देशों के हुक्‍मरान अपने'अपने जेलों में बंद कैदियों को रिहा करते हैं।