देश विभाजन के बाद चला गया था पाकिस्तान के हिस्से में
दुर्गेश मिश्र
पिछले साल नवंबर 2018 में भारत और पाकिस्तान की सरकारों की ओर से पाकिस्तान स्थित गुरुुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के लिए कॉरिडोर के दोनो देशों द्वारा शिलान्यास किए जाने के साथ ही लोगों में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित कटास राज के अलावा वहां स्थित विभिन्न मंंदिरों की बिना वीजा के दर्शनों की मंजूरी दिए जाने की मांग उठने लगी है।
कई बार कटासराज की यात्रा कर चुकीं भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ट नेता और पूर्व पंजाब सरकार में स्वास्थ्य मंत्री प्रो: लक्ष्मी कांत चावला कहती हैं कि लाहौर सहित पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों में स्थित मंदिरों और गुरुद्वारों के दर्शनों की बिना वीजा के इजाजत दी जानी चाहिए। उन्होंने कि वह कई बार पाकिस्तान जा चुकी हैं। लेकिन नियम कड़े होने के कारण चाह कर भी वह वहां के मंदिरों और गुरुद्वारों के दर्शन नहीं कर पाती हैं। यहीं नहीं कई बार कटासराज जाने वाले जत्थें को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए भारत से पाकिस्तान व वहां से भारत आने वाले तीर्थयात्रियों की भावनाओं के समझते वीजा नियमों को सरल बनाया जाना चाहिए। यही नहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फरूख अब्दुल्ला भी भारत और पाकिस्तान सरकार से पाक अधिकृत कश्मीर स्थित सरस्वति मंदिर के दर्शनों के लिए कॉरिडोर बनाए जाने की मांग कर चुके हैं।
क्या है कटासराज का इतिहास
जब कटासराज के लिए बीजा नियम सरल बनाए जाने की मांग उठने लगी है तो यह जानलेना भी आवश्यक कि कटासराज क्या है। धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता क्या और क्यों यह हरिद्वार या काशी की तरह पवित्र है। सन 1947 यानी भारत पाक विभाजन से पहले यह पंजाब में स्थित जगह हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल हुआ करता था। यहां शिवरात्री के दिन भव्य मेला लगा करता था। यहां पजांब, सिंध, ब्लूचिस्तान सहित अन्य पश्चिमि प्रातों यहा तक कि तक्षशिला से भी आकर हिदू अपने पितरों का तर्पण किया करते थे। बताया जाता है कि कटासराज स्थित मंदिर करीब 900 साल से भी अधिक पुराना है। पकिस्तान के पंजाब प्रांत के उत्तीर भाग में चकवाल जिला से लगभग 40 किमी दूर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित। इसके रास्ते में चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं। इस नमक का भारत बड़े पैमाने पर पाकिस्तान से आयात करता है। कटासराज में भगवान शिव का दशवी शताब्दी का बना मंदिर है। इतिहासकारों के मुताबिक इस स्थान को पवित्र शिवनेत्र माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती जब सती हुईं तो भगवान शिव के आंखों से आंसू के दो बूंद टपके थे। एक कटासराज तो दूसरा राजस्थन के पुस्कर में गिरा था। मान्यता है कि बनवास के दौरान पांडवों ने इन्हीं पहाडि़यों में अज्ञातवास काटा था। पानी की तलाश में वे इन्हीं जलाशयों में आए थे और युधिष्टिर ने यज्ञ के प्रश्नों का उत्तर दे अपने भाइयों को जीवित किया कराया था।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ने भी किया था दौरा
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हिंदुओं के इस पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थल का दौरा कर भगवान शिव की पूजा आरती में भाग लिया था। इस दौरान पाकिस्तानी कट्टरपंथियों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने कहा था कि सभी धर्मों के लोग एक समान होते हैं। यही नहीं उन्होंने पाक सरकार द्वारा कटासराज मंदिर का जिर्णोद्धार करवाए जाने की भी बात कही था।
विभाजन से पहले हिंदू बाहुल्य था इलाका
कटासराज से दिसंबर 2018 में लौटे क्रेंद्रीय सनातन धर्म सभा उत्तरी भारत के अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज ने बताया कि विभाजन से पहले कटासराज हिंदू बाहुल्य क्षेत्र था। लेकिन 1947 में भारत विभजन के बाद बहुत से हिंदू भारत चले आए थे। अब इस क्षेत्र हिंदुओं की संख्या बहुत कम रह गई है। वे बताते हैं कि कटासराज मंदिर परिसर में श्री राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर देखे जा सकते हैं। बजाज बताते हैं कि मंदिर परिसर में सात से अधिक मंदिर हैं। वे कहते हैं कि यह सिख और बौध धर्म का भी पवित्र स्थल है। अभी इसकी व्यवस्था वकफ बोर्ड और पाकिस्तान की पंजाब सरकार संयुक्त रूप से देख रही है। वे कहते हैं कटासराज सरोवर की गहराई करीब 30 फुट है। कटासराज के पास ही बौद्ध स्तूप भी है, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था।
कटासराज जाने वाले जत्थों को भी मिले सुविधा
1982 से देशभर से हिंदुओं का जत्था लेकर पाकिस्तान जाने वाले केंद्रीय सनातन धर्मसभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज करते हैं कि कटासराज जाने वाले हिंदुओं को सुविधाएं मिलनी चाहिए। 1999 में जब तत्कालीन प्रधान मंत्री अटली विहारी बाजपेयी भारत-पाक के बीच रिश्तों को मजबूत बनने के लिए बस लेकर लाहौर गए थे तो उस समय केंद्रीय सनातन धर्म सभा 22 सांसदों का एक प्रतिनिधि मंडल भी लेकर गया था। इसमें सुष्मा स्वराज, मीरा कुमार, बरलाम जाखड़, राज्य सभा सदस्य लाजपतराय और मणिशंकर अय्यर आदि शामिल थे।
बढ़ाई जाय यात्रियों की संख्या
पूर्व मंत्री लक्ष्मी कांत चावला, दुर्ग्याणा मंदिर कमेटी अमृतसर के अध्यक्ष और केंद्रीय सनातन धर्म सभा यमुना नगर हरियाणा के अध्यक्ष बजाज का कहना है कि वर्ष में दो बार कटासराज जाने वाले हिंदू यात्रियों की संख्या बढ़ाने की मंजूरी भारत और पकिस्तान सरकारों की ओर से दी जानी चाहिए। बजाज ने कहा कि वह 1974 इंडोपाक प्रोटोकॉल के अनुसार 200 हिंदू यात्रियों का जत्था लेकर वर्ष में दो बार एक महा शिवरात्री को और दूसरा नवंर या दिसंबर के महीने में लेकर पाकिस्तान जा सकते हैं। वे कहते हैं अब यात्रियों संख्या बढ़ाकर पांच सौ या इससे अधिक की जानी चाहिए।
अमृतसर में बनाया जाना चाहिए यात्री निवास
राष्ट्रीय सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष बजाज कहते हैं कि जिस तरह के देशभर में हज हाउस बनाए गए हैं, उसकी तरह कटासराज जाने वाले यात्रियों के लिए भी अमृतसर में पंजाब सरकार और भारत सरकार को मिल कर यात्री निवास बनाए जाने चाहिए। क्योंकि यात्रियों के ठहरने के लिए ना तो अमृतसर में कोई जगह है और ना ही लाहौर मे। जत्थे में शामिल देश के विभिन्न प्रांतों से आए यात्रियों को या तो होटलों में रुकना पड़ता है या फिर गुरुद्वारों में रुकना पड़ता है। इसलिए भारत और पाकिस्तान की सरकारों से अनुरोध है कि वे अमृतसर और लाहौर में यात्री निवास बनवाएं।
इमरान सरकार ने किया हिंदू यात्रियों का स्वागत
देश भर से गए 200 हिंदू तीर्थ यात्रियों का जत्था लेकर पाकिस्तान से लौटे बजाज कहते हैं कि इस बार पाकिस्तान की इमरान सरका ने कटासर राज जाने वाले हिंदू यात्रियों को अटारी बार्डर पर और फिर लाहौर में फूल माला पहना कर और गुलदस्ते भेंट कर स्वागत किया। वे कहते हैं कि हम पाकिस्तान सरकार से मांग करते हैं कि वहां स्थित अन्य हिंदू मंदिरों को खोला जाए और उनका जिर्णोद्धार करवाया जाए। इस दिशा में दोनों देशों की सरकारों को पहल करनी चाहिए। इसे न केवल दोनों देशों के रिश्तों में मधुरता आएगी, बल्कि पर्यटनों को भी बढ़ावा मिलेगा। बजाज ने बताया कि कटासराज तीर्थ स्थल करीब दो किलोमीटर में फैला हुआ है। और यहां पर फिलहाल 36 कमरे बनवाए जा रहे हैं। यही पर महाराजा रणजीत सिंह जरनैल हरिसिंह नलवा की हवेली भी है। जो अब खंडहर का रूप धारण कर चुकी है। लेकिन उसकी प्राचीर आज भी अपनी भव्यता की कहानी सुना रही है। उन्होंनें बताया कि ब्रिटिश गजेटियर के मुताबकि बटवारे से पहले कटासराज झेलम जिले के चकवाल तहील में पड़ता जो अब चकवाल जिले में है।
शक्तिपीठ हिंगलाज सहित दर्जनों मंदिर हैं पाक में
उल्लेखनीय है कि भारत विभाजन के बाद ननकाना साहिब, तक्षशिला और मोनजोदाड़ो सहित कई धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल पाकिस्तान के हिस्से में आए थे। जिन स्थलों का कभी वैभव हुआ करता था वे स्थल आज अपनी अंतिम दिन गिन रहे हैं। इन तमाम स्थलों में से एक है हिंगलाज मंदिर। यह मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है। यह स्थल 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसी तरह पाकिस्तान के सिंहध प्रांत के धारवारक जिले में गौरी मंदिर है। कहा जाता है कि यह मुख्य रूप से जैन मंदिर है जो अब खस्ता हाल है। बताया जाता है कि धरवाण जिले में हिंदू बहुसंख्यक हैं। जिन्हें थारी हिंदूर कहा जाता है। पाक के पंजाब प्रांत के बलावाग स्थित मरिइंडस मंदिर को मध्य काल में बनवाया गया था। यह मंदिर भी खंडहर हो चुका है। पाक अधिकृत कश्मीर में भी 160 वर्ष पुरान खेरख नाथ मंदिर है जो देश विभाजन के बाद से ही बंद पड़ा था लेकिन वर्ष 2011 में पेशावर हाईकोर्ट के आदेश पर दोबारा खोला गया। करांची में करीब 100 साल पुराना वरूण देव का मंदिर हैा इस मंदिर को पाकिस्तान हिंदू काउंसिल ने इस बंद पड़े क्षतिग्रस्त मंदिर को दोबारा तैयार करने का फैसला किया है। करांची के स्वामी नारायण मंदिर और 150 साल पुराना हनुमान मंदिर है। सिंध प्रात में बाबा बनखंडी मंदिर है। इसी तरह पाक अधिकृत कश्मीर में मां सरस्वति का मंदिर है जिसे शारदा देवी मंदिर भी कहा जाता है। इसी तरह पंजाब के सियाल कोट में बाबा जोगिया मंदिर, वीर हकीकत की समाधि सहित दर्जनों मंदिर लाहौर के अनारकली बाजार में अंतिम सांसें गिन रहे हैं।