दुर्गेश मिश्र
अफीम की पिनक और इत्र की गमक से हमेशा मदहोश रहने वाला गाजीपुर देश के इतिहास में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी अपनी विशेष पहचान रखता है। गाजीपुर की धरती का उल्लेख न केवल महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने अपने उपन्यास 'नौका डूबी' किया है, बल्कि इसका जिक्र डॉक्टर राही रामूस रजा ने आधा गांव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी, ओश की बूंद और नीम का पेड़ सहित करीब-करीब अपने सभी उपन्यासों और कहानियों में किया। यही नहीं वे खुद को गंगा का बेटा बताते हुए अपने उपन्यास का किरदार ऐसा गढ़ते थे कि गाजीपुर का जिक्र होना जरूरी हो जाता था। ठीक आज भी स्थितियां ऐसी ही बनीं हैं, लेकिन यह किसी साहित्य या फिल्म की स्क्रिप्ट के लिए नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए।
राजनीति में गंगा की अहमियत का आंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि 2014 के लोक सभा चुनाव में गुजरात से चल कर वारणसी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है। और अब 2019 के लोक सभा चुनाव में प्रियंका बाड्रा गांधी कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने के लिए गांगा की परिक्रमा करती वाराणसी पहुंची। इसी गंगा के किनारे बसी लहुरी काशी यानी गाजीपुर की अहमियत पं. जवाहर लाल नेहरू के समय से रही है।
उत्तर प्रदेश के 80 लोक सभा सीटों वाले गाजीपुर की कुल आबादी 36 लाख से अधिक है। और यह प्रदेश के कुछ हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक है। वर्तमान में यहां के सांसद मनोज सिन्हा हैं जो भारतीय जनता पार्टी में केंद्रीय दूर संचार एवं रेल राज्य मंत्री हैं। 2017 में हुए विधान सभा चुनाव के बाद मनोज सिन्हा का नाम मुख्य मंत्री के तौर पर भी सामने आया था, लेकिन एन वक्त प्रदेश की बागडोर योगी आदित्य नाथ के हाथ में सौंप दी थी। गाजीपुर की गरीबी और यूपी की राजनीति में इसका आंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में इसी गाजीपुर के पूर्व सांसद विश्वनाथ गहमरी और संसद में पूर्व प्रधानमंत्री पं: जवाहर लाल नेहरू को संबोधित करते हुए दिए भाषण ' हमारे क्षेत्र में गरीबी इनती है कि लोग पशुओं के गोबर से निकले अनाज को धोकर खाते हैं ' का जिक्र कर लोगों को भावुक कर दिया था। यही नहीं कम्युनिस्ट पार्टी से लोक सभा और विधानसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे सरजू पांडेय के बारे में भी पं. नेहरू ने कहा था कि मैं उस जन प्रतिनिधि को देखना चाहता हूं जो एक साथ लोकसभा और विधानसभा जीत कर आया है। अपने इसी गौरवशाली अतीत के कारण हर समय केंद्र और प्रेदश की राजनीति का केंद्र बना रहा है। बताया जा रहा है कि इस बार भी गाजीपुर के लोकसभा का चुनाव दिलचस्प होगा। क्योंकि भाजपा के मनोज सिन्हा के सामने दोबारा संसद पहुंचने की चुनौती होगी, वहीं यह बसपा और सपा गठबंध के प्रत्याशी और बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के लिए भी नाक की बात होगी। इसके साथ ही पूर्वांचल की यह हॉट सीट कांग्रेस के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल होगी।
कौन हैं अफजाल अंसारी

65 वर्षीय अफजाल अंसारी मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट से पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक रहे। इसके बाद वह पार्टी बदल कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। चौदहवीं लोक सभा चुनाव में वह गाजीपुर से सांसद भी रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी कौमी एकता दल बनाया। मौजूदा समय में कौमी एकता दल का बसपा में विलय हो गया और वह गाजीपुर से भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा के सामने बसपा-सपा के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक रहे हैं।
मनोज सिन्हा का राजनीतिक सफर
आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक 1989 से 96 के बीच मनोज सिन्हा परिषद के सदस्य रहे। 1996 में वे 11वीं और 1999 में 13वीं लोक सभा के लिए गाजीपुर से निर्वाचित होकर संसद के गलियारे तक पहुंचे। जबकि 14वीं और 15 लोकसभा के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के लिए वे गाजीपुर से निर्वाचित हो कर संसद तक पहुंचे और भारत सरकार में केंद्रीय दूर संचार और रेल राज्य मंत्री के पद पर रहे। मौजूदा समय में 19 जून को होने वाले लोकसभा चुनाव में वह गाजीपुर से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।
मनोज सिन्हा के सामने अपनों की ही चुनौतियां
2014 के लोकसभा चुनाव में सपा की शिवकन्या कुशवाहा को मात्र 32, 452 मतों के अंतर से हराने वाले 60 वर्षीय भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा की राह इस बार असान नहीं होगी। सपा-बसपा गठबंधन की चुनौतियां तो हैं ही, साथ ही उन्हें अपनों की चुनौतियों का समाना भी करना पड़ सकता है। क्योंकि गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र का एक बहुत बड़ा उनसे नाराज है। राजपूत वर्ग के नाराज इस धड़े का आरोप है कि सिन्हा केवल भूमिहारों के हितैसी हैं और उन्हीं की सुनते हैं। हलांकि उनके लिए राहत की बात यह रहेगी कि गठबंधन के प्रत्याशी अफजाल अंसारी के गाजीपुर से प्रत्याशी बनाए जाने पर राजपूतों का यह धड़ा मनोज का समर्थन कर सकता है।
कांग्रेस और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने नहीं खोले पत्ते
हलांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर और समाजवादी पार्टी से अलग होकर बनी प्रगतिशील सामाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिपाल यादव ने अभी तक गाजीपुर से अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं की है। हलांकि पीएसपी पूर्व मंत्री रहीं पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव सैयद सादाब फातिमा के गाजीपुर से प्रत्याशी बनाए जाने के अटकलों को बिराम देते हुए अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव सदर-ए-आलम का कहना है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी। देखिए नेताजी क्या करते हैं, परिस्थिति क्या बनती है। हमारा बहुजन मुक्तिमोर्चा और डॉ अयूब की पीस पार्टी सहित कई अन्य छोटे दलों से भी गठबंधन हैं। फिलहाल अभी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं हुई है।
निर्दलीय से भी कम वोट मिला था कांग्रेस को
उल्लेखनीय है कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा, सपा और बसपा से तो छठवें स्थान पर थी ही। बल्कि राष्ट्रीय परिवर्तन दल और निर्दलीय प्रत्याशी से भी कम 18908 वोट मिले थे। जबकि राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी को 59510 और आजाद उम्मीदवार अरुण कुमार सिंह को 34,093 वोट पड़ थे। इस बार कांग्रेस को इस कड़े अनुभवों से भी सीख लेने की भी जरूरत है।
गाजीपुर लोकसभा सीटा का इतिहास
गाजीपुर संसदीय सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जबकि एक विधानसभा सीट जहूराबाद बलिया लोकसभा सीट में आती है। बताया जाता है कि कांग्रेस के हर प्रसाद सिंह यहां के पहले सांसद थे। 1967 और 1971 के चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी के सरजू पांडे, 1997 में भारतीय लोकदल ने 1980 और 84 में कांग्रेस, 1991 में कम्युनिस्ट, 96 में भाजपा और 1998 में सपा ने इस सीट पर अपना परचम लहराया।
कुल वोटर्स
संसदीय क्षेत्र गाजीपुर के कुल मतदाओं की संख्या 2606045 है। पुरुष मतदाता 1424634 और महिला मतदाता 1181312 है, जबकि थर्ड जेंड 99 हैं। साक्षरता की बात करें तो यहां की औसत साक्षरता दर करीब 61 प्रतिशत है। यदि जातीय आधार पर बात करें तो गाजीपुर की 89 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है और 10 प्रतिशत आबादी मुस्लमानों व 1 प्रतिशत आबादी अन्य जातियों की है।