गुरु घर का लंगर, 75 हजार लोग रोजाना करते हैं नि:शुल्‍क भोजन


दुर्गेश मिश्र
लंगर पंजाब और पंजाबियत की पहचान है।  अमृतसर स्थित विश्‍व प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर में आने वाला श्रद्धालु हों या सैलानी यहां के श्री गुरु रामदास जी लंगर भवन में बिना प्रसाद छके नहीं जाता।  दूसरे शब्‍दों में कहें तो श्री गुरु रामदास जी के बसाए इस नगर में कोई भी व्‍यक्ति भूखा प्‍यास नहीं रहता।  तभी तो अमृतसर को 'सिफ्ति दा घर' कहा जाता है। यहां आए दिन कहीं न कहीं लंगर चलता रहता है। 
गुरुद्वारा साहिब में शुद्ध, शाकाहारी नि:शुल्‍क वितरित किए जाने वाले भोजन को 'लंगर' कहते हैं।  यह लंगर, सभी धर्म-संप्रदाय, जाति और मजहब के लोगों के लिए बिना भेदभाव के हरवक्‍त खुला होता है।   सिखों के धर्म ग्रंथ में 'लंगर' शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है, पर आम तौर पर 'रसोई' को लंगर कहा जाता है।  इस सरोई में ऊंच-नीच, जाति-धर्म , अमीर-गरीब यानी हर तबके का व्‍यक्ति एक साथ बैठ कर अपनी भूख और प्‍यास मिटा सकता है।  
निराकारी दृष्टिकोण के अनुसार कोई भी जीव आत्मा या मनुष्य अपनी आत्मा की ज्ञान की भूख, अपनी आत्मा को समझने और हुकम को बूझने की भूख गुरु घर में आकर किसी गुरमुख से गुरमत की विचारधारा को सुनकर/समझकर मिटा सकता है। 

श्री गुरुनानक देव जी ने शुरू की थी लंगर की प्रथा
 मान्‍यता है कि लंगर प्रथा 15वीं शताब्‍दी में सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी। उन्‍होंने समूची मानवता को एक सिख दी थी - " कीरत करो, वंड छको" अर्थात मेहनत करके कमाओ और  मिल बांट कर खाओ। गुरु नानक देव जी की यह सीख आज भी यहां के लोगों के व्यवहारिक जीवन का आधार है।   श्री गुरु नानक देव जी अपने शिष्‍यों बाला और मरदाना के साथ  जहां भी गए वहां श्रद्धालुओं के साथ ऊंच-नीच, जात-पात से उपर उठकर जमीन पर  बैठकर ही भोजन करते थे।  श्री गुरु नानक देव जी की इसी लंगर परंपरा को सिखों के तीसरे गुरु श्री अमरदास जी ने आगे बढ़ाया।

सभी धर्म जाति के लोग एक साथ जमीन पर बैठक कर करते हैं भोजन
 विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग, छोटे बड़े सब लोग एक ही स्थान पर बैठकर लंगर छकते (खाते) हैं। इससे सामाजिक समरसता को बल मिलता है। और यह संदेश जाता है हर व्‍यक्ति ईश्‍वर की संतान है। कोई छोटा-बड़ा, ऊंच-नींच नहीं है। पूरी दुनिया में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है, जहां लंगर प्रथा की मर्यादा चली आ रही है। पंजाब के लोग चाहे दुनिया के किसी भी देश में रह रहे हों, वह लंगर प्रथा को जीवंत रखे हुए हैं। 
लंगर तैयार करने में महिलाओं की होती है विशेष भूमिका
लंगर तैयार करने में महिलाओं की भूमिका महत्‍वपूर्ण होती है। इसे तैयार करने की विधि बहुत ही सरल और शुद्ध और पवित्र है। जिस स्थान पर भी लंगर लगाना हो वहां  अस्थायी चुल्हा बना कर उसके इर्द-गिर्द मिट्टी का लेप कर दिया जाता है। आटा काफी मात्रा में गूंथ लिया जाता है। जिसे मिलजुल कर औरतें करती हैं। जलाने के लिए गोबर की पाथी, लकड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है। लंगर पकाने की सारी विधि और खर्च सामूहिक होता है। इस लंगर में चाय-पकौड़ौं और रोटी-दाल से लेकर कई तरह के पकवान तैयार कर लोगों नि:शुल्‍क भोजन करवाया जाता है। लंगर में शुद्ध और शाकाहारी भोजन तैयार किया जाता है। 

पंजाबियों के जीवन का आधार है लंगर
पंजाब और पंजाबियों में लंगर खुशी और गम के अलावा तीज-त्यौहारों,  मेलों, मांगलिक कार्यों व कथा-कीर्तन पर भी लगाया जाता है। इस कार्य में लोग खुशी-खुशी सहयोग देते हैं। वर्तमान में लंगर तैयार करने के लिए आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग होने लगा है। इसमें रोटी बेलना, आटा गूंथना और बर्तन साफ करने वाली मशीनें विशेष भूमिका निभाती हैं। यही नहीं श्री गुरु नानक देव जी द्वारा चलाई गई लंगर प्रथा सिख धर्म में एकता और सांझे भाईचारे का मजबूत आधार है। 
दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है गोल्‍डन टैंपल में
अमृतसर स्थित श्री हरिमंदिर साहिब जिसे दरबार साहिब या गोल्‍डन टैंपल के नाम से जाना जाता है। इसी मंदिर परिसर के एक भाग में बनी रसोई में प्रतिदिन 70 हजार से लेकर एक लाख लोग प्रतिदिन नि:शुल्‍क भोजन करते हैं। इस जगह को श्री गुरु रामदास जी लंगर हाल कहा जाता है। गर्मी की छुट्टियों व तीज त्‍योहारों के दिन यह आंकड़ा बढ़ जाता है। यहां रोजाना 12 हजार किलो आटा, 13 हजार किलो दाल, 1500 किलो चावल और 2000 किलो सब्जियां बनती हैं।  श्री हरिमंदिर साहिब में आने वाली संगत के लिए प्रतिदिन दो लाख रोटियां बनाई जाती हैं।  इस लंगर हाल में लगी रोटी मेकिंग मशीन एक घंटे में 25 हजार रोटी बनाती है। 

एक बार में बनती है सात क्विंटल दाल
श्री गुरु रामदास जी लंगर हाल के मैनेजर के मुताबिक भोजन में क्‍या-क्‍या पकेगा यह पहले से ही तय होता है।  यहां खीर बनाने के लिए पांच हजार लीटर दूध, एक हजार किलो चीनी और पांच सौ किलो घी का इस्‍तेमाल होता है।  लंगर का प्रसादा तैयार करने के लिए प्रतिदिन सौ से अधिक एलपीजी सिलेंडर, पांच हजार किलो लकड़ी लगती है।    लंगर तैयार करने के लिए 450 स्‍टाफ के अलावा सैकड़ों लोग सेवा करते हैं।  रोटियां सेंकने के लिए 11 बड़े तवे, दाल और सब्जियां बनाने के लिए इतने ही बड़े कड़ाह का इस्‍तेमाल किया जाता है।  इन कड़ाओं में सात क्विंटल दाल एक बार में बन सकती है।  

पांच हजार लोग एक साथ जमीन पर बैठ कर करते हैं भोजन
दरबार साहिब के इस विशाल लंगर हाल में एक साथ बैठ कर पांच हजार से अधिक लोग भोजन करते हैं।  इस लंगर भवन में संगत के लिए  24 घंटे गुरु का प्रसाद बनता रहता है। यहां आने वाला राजा हो या फकीर सभी को एक साथ जमीन पर बैठा कर भोजन करवाया जाता है।  भोजन करने के बाद पंगत के उठते ही बैटरी चालित मशीन से लंगर हाल की सफाई कर तुरंत संगत को भोजन करने के लिए बैठा दिया जाता है। यहां लंगर छकने वाले हाजारों लोगों के बर्तन तीन लाख वॉलंटियर्स रोज धोते हैं।  हाइजीन मेंटन के लिए इन बर्तनों को तीन से पांच बार धोया जाता है। 

दुनियाभर में बसे लाखों सिख परिवार भेजते हैं दवांस
एसजीपीसी के अधिकारियों के मुताबिक इतनी बड़ी रसोई में रोजाना लंगर का भोजन बनाने के लिए दुनियाभर में बसे लाखों सिख परिवार अपनी कमाई का दसवां भाग गुरुद्वारों की सेवा में भेजते हैं।  इन्‍हीं पैसो से गुरुद्वारा का प्रबंध लंगर का खर्च चलता है। यहां प्रयोग होने वाली हर वस्‍तुओं की गुणवत्‍ता की परख की जाती है। इसके बाद ही संगत को परोसी जाती है।  लंगर की परंपरा देश- दुनिया में बने सभी गुरुद्वारा साहिबों कायम है।