सिख धर्म में गौरवशाली इतिहास है निहंग सिंहों का


सिख धर्म में निहंग सिंहों का गौरवशाली इतिहास रहा है।  निहंग से अभिप्राय है ऐसे सिख से है जो पूर्ण रूप से दसम गुरु के आदेशों के लिए हर समय तत्पर रहते हैं और प्रेरणाओं से ओतप्रोत होते हैं।  यह दसम गुरु के काल में यह सिख गुरु साहिबानों के प्रबल प्रहरी होते थे।  निहंग सिंह  गुरु महाराजों द्वारा रची गई रचना साहिब और  गुरु ग्रंथ साहिब के प्रहरी होते हैं। ये  "सिख" और "गुरु ग्रंथ साहिब" की रक्षा आखरी सांस तक करते हैं ।  निहंग सिंह पूरी तरह  सिख धर्म के लिए समर्पित होते हैं l निहंगों को उनके आक्रामक व्यक्तित्व के लिए भी जाना जाता है।

1708 में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बनाया था संगठन
  निहंग सिंहों के धर्म चिन्ह आम सिखों की अपेक्षा मज़बूत और बड़े होते हैं और जन्म से लेकर जीवन के अंत तक सिख धर्म के  जितने भी  संस्कार होते हैं उन्‍हें मर्यादानुसार निर्वहन करते हैं l 1708 में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरिआई बख्‍शकर पंथ को सदिवी तौर पर  शबद गुरु सिद्धांत के साथ जोड़ा। साथ ही कुछ संगठनों की स्‍थापना भी की।  इन जत्‍थेबंदियों में से एक सिमौर संगठन है निहंग सिखों की जिसे गुरु की लाडली फोज भी कहा जाता है। जानकारों के मुताबिक निहंग शब्‍द फारसी से लिया गया है। 

निहंगों में हैं दो दल
कहा जाता है कि निहंग सिंहों में दो दल है।  एक बाबा बुड्ढा और दूसरा तरना दल। इसमें तरना दल को गर्म ख्‍याली दल माना जाता है।  इस दल के आगे कई छोटे-छोटे दल भी हैं। गरुद्वारा प्रबंधन का कार्यभार देखने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से इस दल का कोई संबंध नहीं होता।  निहंगों को अकाली भी कहा जाता है और वे श्री अकालतख्‍त के पुजारी होते हैं।