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प्रतिकात्मक फोटो : स्रोत : सोशल साइट्सस |
'कुदेशन' पंजाबी रंगमंच की दुनिया में एक चर्चित नाटक है। इसका अब तक करीब 300 बार मंचन किया जा चुका है। इसे पंजाबी के प्रसिद्ध नाटककार जतिंदतर बरादड़ ने लगभग 10 पहले लिखा था। जतिंदर बरारड़ ने 'कुदेशन' के जरिए यह दिखाने का प्रयास किया था कि लड़कियों की कमी के कारण पंजाब और हरियाणा के अधिकांश गांवों के लोग वंश वृद्धि के लिए किस तरह दूसरे प्रदेशों से लड़कियों को खरीद कर लाते हैं और उनसे शादी करते हैं।
नाटककार बराड़ ने 'कुदेशन' की नायीका गंगा के जरिए यह भी दिखाने का साहस किया है कि किस तरह दूसरे राज्यों से खरीद कर लाई गई लड़कियों से शादी के बाद बच्चा पैदा होने पर उसे किसी और के हाथ बेच दिया जाता है। लड़की के खरीदने, बचने और बच्चा पैदा करने का क्रम चलता रहता है। जतिंदर बराड़ ने तो रंगमंच को माध्यम बनाकर 'कुड़ीमार' पंजाब और हरियाणा के लोगों को आइना दिखाने का काम किया है। लेकिन सौ फीसद सच्चाई यही है कि लड़कियों की कमी के कारण पंजाब और हरियाणा में दुल्हनें खरीद कर लाई जाती हैं।
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प्रतिकात्मक फोटो : स्रोत : सोशल साइट्सस |
कुदेशन से गूंज रही किलकारी
एक सर्वे रिर्पोट के मुताबिक कुछ साल पहले तक गर्भ में ही बेटियों को मारने के लिए प्रसिद्ध हरियाणा में करीब 1.30 हजार से अधिक परिवार ऐसे हैं जिनके घरों में कुदेशन (दूसरे राज्यों से खरीद कर लाई गई लड़कियां) से किलकारियां गूंज रही हैं। यह उस प्रदेश की सच्चाई है जिस प्रदेश में कल्पना चावला और बबिता फोगाट जैसी बेटियों ने जन्म लिया है । 2017 से 2019 यानि पूरे एक साल तक हुए सर्वे में यह बात समाने आई है कि विभिन्न प्रदेशों, खानपान, पहनावा और भाषा अलग-अलग होने के बावजूद एक लाख तीस हजार से अधिक परिवारों की वंश परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। फिर भी इनके माथे पर लगा कुदेशन का दाग नहीं धुल रहा है।
पंजाब के सीमावर्ती गांवों में भी रहा है चलन
पंजाब के सीमावर्ती गांवों में भी रहा है चलन
खरीद कर लाई गई दुल्हनों से वंश बेल बढ़ाने का चलन हरियाणा में ही नहीं बल्कि पंजाब के सीमावर्ती गांवों में रहा है। हलाकि लिंगानुपात में थोड़ा सुधार और बेटियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने के बाद बिहार, झारखंड, बंगाल और आसाम से लड़कियां खरीद कर शादी करने का चलन कुछ कम हुआ है। पंजाब के कई गांवों में कुदेशन से ही 'कुल दीप ' रौशन हो रहा है।
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प्रतिकात्मक फोटो : स्रोत : सोशल साइट्सस |
हरियाणा में खूब चला 'बहू दो वोट लो' का नारा
लिंगानुपात का आंदाजा इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान 'बहू दो वोट लो' का नारा बन चुका था। हरियाणा में अविवाहित पुरुषों ने एक संगठन बना कर बहू दो वोट लो अभियान शुरू किया था। यही नहीं हरियाणा के ही जींद जिले के कुंवारे पुरुषों ने 'रांडा यूनियन' (अविवाहित युवाओं का संगठन) बनाया था। हलांकि अच्छी बात यह है कि हरियाणा में लिंगानुपात में थोड़ा सुधार आया है। इसके पीछे लोग केंद्र सरकार की 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान को मानते हैं।
धोखे का शिकार भी होते हैं लोग
ऐसा नहीं है कुदेशन की सभी महिलाएं घर बसाती हैं या इनका शोषण नहीं होता। शादी कर घर बसाने की लालसा में कई अविवाहित पुरुष अपनी जमीन-जायदाद बेच कर दुल्हन लाते हैं। इनमें से कई तो घर बसा लेते हैं लेकिन, कईयों का भाग्य ऐसा नहीं होता। कई दुल्हनें कुछ दिन बाद खुद घर चली जाती हैं तो कुछ ससुराल वालों का सामान समेट कर चंपत हो जाती हैं। वहीं कई मामलों में दूसरे प्रांतों से लाई गई लड़कियां नाबालिग होती हैं। ऐसे में उनके परिजन केस दर्ज करवा देते हैं। इन परिस्थितियों में लोकलाज के भय से कई लोग लूट का शिकार होने के बावजूद केस दर्ज नहीं करवाते। खरीद कर लाई गई लड़कियों के मामले में भी कुछ ऐसा ही होता है कि बच्चा पैदा होने के बाद महिला को किसी और के हाथ बेच दिया जाता है।