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नालियों में सोने की तलाश करता न्यारा। |
अमृतसर : गंदी नालियों में सोना! यह सुन कर थोड़ी हैरानी, थोड़ी परेशानी, थोड़ा माथे पर शिकन, फिर गहरी सांस। लेकिन, 'रब दा घर' कहे जाने वाले अमृतसर के गुरु बाजार में सुनारों की दुकानों के आगे से बहने वाली नालियों में रोजाना सुबह ऐसे ही पचासों लोग सोने की तलाश करते हुए मिल जाएंगे। इन्हें न्यारे कहते हैं, यह इनका पुश्तैनी काम है और जीविको पार्जन का साधन और संसाधन भी। वैसे ये कोई आसान काम नहीं है क्योंकि सोने के कुछ टुकड़ों के पाने की आशा में ये लोग कई किलों कूड़े, धूल और कीचड़ को साफ करते हैं। कूड़े से मिले सोने से ये लोग कोई बहुत अमीर नहीं हो गए हैं लेकिन सुबह से लेकर दोपहर तक इनमें से सभी लोगो को अपनी किस्मत, कौशल और अनुभव के आधार पर 200 से लेकर 2000 तक रूपए मिल जाते हैं।
अमृतसर की तंग गलियों में सर्राफा बाजार (सुनियारा मार्केट) में अपने साथियों के साथ नालियों में बहने वाले कचरे में हाथ डाल कर सोने के कण तलाश रहे न्यारा यूनियन के प्रधान भीम कहते हैं कि उन्हें सर्राफा बाजार की गंदी नालियों में हाथ डालने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होती, क्योंकि इस कार्य से उनके घर का चूल्हा जलता है। भीम जैसे कई और लोग हैं जो इस कार्य से जुड़े हैं। यह पूछने पर कि यह कार्य कबसे कर रहे हैं, वे कहते हैं कि यह उनका पुश्तैनी कार्य है जो वे पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहे हैं।
धूल में न्यारे ढूंढते हैं सोना
भीम के साथ ही सोने की तलाश कर रहे देव, काली, भारत, विक्रम, जश कुमार आदि बताते हैं कि वे सुनारों की दुकानों की सीढि़यों से लेकर दुकानों के बाहर तक झाड़ू लगा कर धूल मिट्टी एकत्र कर उसमें से सोना सहित अन्य कीमती धातुओं और स्टोन की तलाश करते हैं। न्यारा यूनियन के सदस्य बताते हैं कि इस काम के लिए वह सुनारों से साल का ठेका करते हैं। इसके लिए उन्हें एक मुश्त रकम सुनारों को चुकानी पड़ती है।
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अमसर का गुरुबाजार (सुनियारा मार्केट) |
तभी तो कहलाते हैं न्यारे
भीम बताते हैं कि देखने में तो यह काम मुफ्त का लगता है, लीकिन कचरे से सोने के छोटे से छोटे कण को तलाशने में काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। कभी'कभी तो नालियों और कचरे के ढेर में हाथ मारने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता। वे कहते हैं कि अइब यह लाभ का धंधा नहीं रहा। यूनियन प्रधान कहते हैं कि यदि सुनियारा मार्केट में कहीं कोई घटना-दुर्घना होती है तो पुलिस सबसे पहले उन्हीं को तलब करती है। यह पूछे जाने पर कि चतुर सुनारों की जो आंखें छोटे से छोटे कण को नहीं पकड़ पातीं उन्हें न्यारे कैसे ढूंढ लेते हैं, उनका कहना है कि इसीलिए तो हम न्यारे कहे जाते हैं।
इस तरह ढूंढते हैं सोना
भीम के साथ काम कर रहे काली हंसते हुए कहते हैं-'जिन ढूंढा तिन पाइयां, गहरी नाली पैठ'। वे कहते हैं सबसे पहले हम नालियों से कचरा निकालते हैं। इसके बाद इसमें थोड़ा-थोड़ा पानी डाल कर धीरे-धीरे हिलाते हुए सारा कचरा बाहर करते हैं। अंत में जो थेड़े से रेत या मिट्टी के कण बच जाते हैं उनमें तलाशते हैं सोने के छोटे से छोटे टुकड़े को।
खाक छानने के बाद भी खाली रह जाते हैं हाथ
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इस तरह निकालते हैं सोना |
काली कहते हैं कि कभी-कभी तो इनमें तांबे के दुकड़ से लेकर नवरत्नों के टुकड़ तब हाथ लग जाते हैं तो कभी-कभी पूरा दिन खाक छानने के बाद भी मायूसी हाथ लगती है। उसदिन किस्मत का खेल समझ कर मन को समझा लेते हैं।
इसी से जलता है घर का चूल्हा
काली कहते हैं कि हमारे दादा जी बाताते थे कि पहले जब अमृतसर एक चारदीवारी के अंदर होता था उस समय यहां सेने के बहुत कारोबारी होते थे। काशी (वाराणसी), गुजरात, लाहौर, पेशावर और मुल्तान तक के व्यवसायी यहां पर आते थे। तब आधुनिक मशीने भी नहीं हुआ करती थीं। ऐसे में सुनारों की नजरों से पिफसल कर सोने के छोटे-छोटे कण और अन्य महंगे रत्न तेजाबी पानी के साथ नालियों में बह जाते थे, जिसे सुबह होने पर हम न्यरे नालियों के कचरसे तलाश लेते हैं। उस समय इसका कोई ठेका भी नहीं हुआ करता था, लेकिन बदलते समय और हालात के चलते अब तो सुनारों को खुश करने के लिए कद्दी और चादरें तक देनी पड़ती हैं। तब जाकर वे गुरु बाजार की नालियों में न्यारों हाथ डालने देते हैं।
पौ फटते ही शुरू हो जाती है सोने की तलाश
गंदी नालियों में सोने की तलाश करने वाले न्यारे दरबार साहिब यानी स्वर्ण मंदिर के पास स्थित गुरु बाजार में ही नहीं बल्कि शक्तिनगर, दुर्ग्याणा मंदिर व खजाना गेट सहित शहर के अन्य भागों में स्थित सुनियारों की दुकानों के पास से होकर निकलने वाली नालियों में हर रोज सोने की तलाश करते दर्जनों न्यारे दिख जाएंगे। या यूं कहें की पौ फटते ही शुरू हो जाती है सोने की तलाश।
प्रस्तुति : समीर