ब्रिटिश हुकूमत की याद दिलाते हैं गाजीपुर जिले के थाने

 


दुर्गेश गाजीपुरिया

 बेशक आज देश को आजाद हुए 87 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी भारत का पुलिस प्रशासन अंग्रेजों के थाने और कचहरियों में उन्‍हीं के शासन प्रणाली पर काम कर रहा है। हां थोड़ा बदलाव जरूर हुआ हैलेकिन, व्‍यवस्‍था उन्‍हीं की है।  हम बात कर रहे हैं जनपद गाजीपुर और गाजीपुर के थानों की।

बाबर ने मुहम्‍मद खान नूहानी को बनाया था गाजीपुर का प्रशासक

जिला गाजीपुर के थाने अंग्रेजों के लिए कितने महत्‍वपूर्ण थे। यह जानने के लिए गाजीपुर जिले का इतिहास जानना बेहद जरूरी है। इसके लिए हमें मुगलिया सल्‍तनत के इतिहास के पन्‍ने पलटने होंगे।  भारत में मुगल वंश के संस्‍थापक बाबर ने ईसवी सन 1526 से 1530 के बीच मुहम्‍मद खान नूहानी को गाजीपुर का प्रशासक बनाया।  इसके बाद अकबर के शासनकाल में अफगान अली कुली खान ने गाजीपुर का प्रभार संभाला और  ज़मानिया शहर का विकास किया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद यह क्षेत्र जामंधर मानसा राम ने लिया था। गाजीपुर और मोहम्‍मदाबाद के बीच पड़ने वाले सहबाज कुली के बारे में कहा जाता है कि इस जगह को अली कुली खान ने आबाद किया था।  

अली कुली खान ने बसाया जमानिया

इतिहासकारों की माने तो जौनपुर के शासक अलिकुली खान ने 1560 में गाजीपुर जिले के ज़मानिया शहर की स्थापना की। यह शहर बिहार के बक्‍सर जिले की सीमा से लगता हुआ गंडक नदी के किनारे स्थित है। लगभग 35-36 हजार की आबादी वाला यह शहर सामरिक दृष्टि से जितना महत्‍वपूर्ण मुगलों के लिए था उतना ही अंग्रेजों के लिए भी।  क्‍योंकि जमानिया और गहमर से न केवल आज का बिहार बल्कि बंगाल तक शासन पर नजर रखा जा सकता था।

1764 में अंग्रेजों ने किया गाजीपुर पर कब्‍जा

 इतिहास के धुंधलकों में झांके तो पता चला है कि 22 अक्‍टूर 1764 को सर हेक्‍टोमुनरो और मुगलों के बीच बक्‍सर में युद्ध हुआ। जिसे इतिहास में बक्‍स के युद्ध के नाम से जाना जाता है। गाजीपुर के जिले के गंगापार का यह बक्‍सर आज बिहार राज्‍य का एक छोटा सा जनपद है।  बक्‍सर की यह लड़ाई बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब सुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्‍त सेना और अंग्रेजों के बीच लड़ा गया था।  इस जंग में इस्‍टइंडिया कंपनी की जीत हुई और यहीं से गाजीपुर का नया इतिहास लिखा जाने लगा।

 रिचर्डसन को न्‍यायाधीश और रॉबर्ट वॉर्लो को अंग्रेजों ने बनाया गाजीपुर का पहला कलेक्‍टर

मुहम्‍मद बिन तुगलक के सिपाहसलार सैयद मसूद अल हुसैनी गाजी ने राजा मांधाता को हराकर गाधीपुरी को गाजीपुर कर दिया इसके बाद अंग्रेजों ने 1764 ईस्वी में मुगलों को हरा कर इसे अंग्रेजी में एक नाया नाम दिया घाजीपुर।  इस्‍टइंडिया कंपनी ने  बक्सर और गाजीपुर को जीतने के बाद गाजीपुर को अपना जिला मुख्‍यालय बनया । उस समय बर्तानवी हुकूमत ने  श्री रिचर्डसन को गाजीपुर का प्रथम न्यायाधीश के रूप में पोस्ट किया और श्री रॉबर्ट वॉर्लो को इस जिले का पहला कलेक्टर बनाया। उस समय आज का बलिया जनपद गाजीपुर का ही अंग था। और बलिया एक तहसील हुआ करती थी।

44 साल बाद 1818 में फिर हुआ पुनर्गठन

 सन 1764 में मुगलों से गाजीपुर और बक्‍सर जीतने के करीब 44 साल बाद यानी 1818 में इंस्‍टइंडिया कंपनी गाजीपुर जनपद का फिर से पुनर्गठन किया। क्‍योंकि यह क्षेत्रफल के हिसाब से यह जिला काफी बड़ा था। उस समय आज का आधुनिक बलिया, बिहार के बक्‍सर जिले का चौसा, वाराणसी का नरवान, आजमगढ़ का सागरी, मऊ मोहम्‍मदाबाद और घोसी परगना तब गाजीपुर के अंग हुआ करते थे।  इतिहासकारों का मानना है कि यहीं से अंग्रेजों ने गाजीपुर जनपद के अधीन आने वाले क्षेत्रों में थानों का निर्माण शुरू किया जिनकी मजबूत नींव पर आज भी इन थानों की दीवारें और छतें टिकी हुई हैं।

जमानिया और गहमर में बनाए थाने

गंगा पार के क्षेत्रों पर नजर रखने के लिए इस्‍टइंडिया कंपनी ने जमानिया और गहमर में अपनी कोतवाली और  थाने बनाए। क्‍योंकि इन जगहों से बर्तानवी हुकूमत न केवल बक्‍सर, सासाराम तक नजर रखती बल्कि बंगाल तक पहुंचने में भी उन्‍हें आसानी रहती थी। यही नहीं गाजीपुर जिले के पुनर्गठन के ठीक दो वर्ष बाद यानी 1820 में अंग्रेजों ने देश का पहला अफीम कारखाना लगाया और गाजीपुर में अपना हवाई अड्डा बनाया।  इसबीच गाजीपुर जनपद के लोगों को अफीम उत्‍पदान के लिए प्रोत्‍साहित भी किया गया। ऐसे में जमानिया और गहमर के थाने सामरिक दृष्टि के साथ-साथ अफीम उत्‍पादकों पर भी नजर में महत्‍वपूर्ण थे।

1902 में बना करीमुद्दीनपुर का थाना

गाजीपुर में लगभग सौ साल की हुकूमत के बाद अंग्रेजों के खिलाफ बिद्रोह की चिंगारी फूटने लगी थी। ऐसे में इसे दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने धड़ाधड़ थानों का निर्माण शुरू किया।  मोहम्‍मदाबाद तहसील के अंतर्गत करीमुद्दीन थाने का निर्माण सन 1902 में किया।  उस समय दो बिघा आठ बिसवा 16 धुर में बने इस थाने के निर्माण में कुल 5754 रुपये खर्च आया था।  अंग्रेजों की गजेटियर के मुताबिक इस रकम से हवालात, सिपाहियों के लिए बैरक, पुलिस स्‍टेशन ऑफिस, एएसआई क्‍वार्टर, शौचालय और घोड़ों के अस्‍तबल का निर्माण कराया गया था। अंग्रेजों का बनाया यह थाना, हवालात और बैरक आज भी वैसे ही हैं जैसे अंग्रेजों के जमाने में हुआ करते थे।

1913 में बना नरही थाना

1857 की क्रांति के करीब २२ साल बाद अंग्रेजों ने बलिया को गाजीपुर से अलग कर 1879 बलिया को नया जिला बना दिया। बलिया के जिला बनने के करीब 34 साल बाद अंग्रेजों ने बलिया-बक्‍सर मार्ग पर 1913 में नरही थाने का निर्माण किया। बक्‍सर से करीब 17 किमी और बलिया से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित नरही थाना तब अंग्रेजों का बेस कैंप हुआ करता था।  एक एकड़ 16 ढिसमिल में बने इस थाने में आज भी फरियादी आते हैं।  गजेटियार के मुताबकि तब गोरी हुकूमत बक्‍सर और बलिया जिले के आसपास के क्षेत्रों पर यही से नजर रखती थी। थाना प्रभारी ज्ञानेंद्र मिश्र ने बताया कि  थाने का निर्माण करते समय अंग्रेजों ने टाइप वन के 10 कमरे, सिपाहियों के लिए दो बैरक, स्‍नानागार और घोड़ों के लिए दो अस्‍तबल बनवाए थे। अस्‍तबल को छोड़ अंग्रेजों की बनवाई ये सभी इमारतें आज भी सुरक्षित है और इसी इमारत में थाना चलता है।

कासिमाबाद थाना भी खास

अंग्रेजों के बनवाए थानों की बात करें तो गाजीपुर जिले का थाना कासिमाबाद भी उनमें से एक है।  क्‍योंकि इस क्षेत्र में नील और अफीम की खेती बहुतायत होती थी।  इसके साथ मऊनाथ भंजन में अंग्रेजों की छावनी थी। यही नहीं प्रसिद्ध उपन्‍यासकार और पटकथा लेखक स्‍व: डॉक्‍टर राही मासूम रजा अपने प्रसिद्ध उपन्‍यास 'आधा गांव', 'नीम का पेड़' और हिम्‍मत जौनपुरी सहित अन्‍य कहानियों में भी कासिमाबाद थाने का उल्‍लेख किया है।  यही नहीं इस थाने में प्रसिद्ध कम्‍युनिस्‍ट नेता और स्‍वतंत्रता सेनानी सरयू पांडे को गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने रखा था।