जानें क्या है MSP, जिसके लिए धरने पर बैठे हैं किसान (know what is MSP )




कृषि संशेधन कानून के बनते ही सबसे पहले जिस बात को लेकर किसानों ने आपत्ति जताई थी वह था एमएसपी यानी मीनिमम सपोट प्राईज। इसी मीनिमम सपोट प्राइज को लेकर किसानों में डर है नया कृषि सुधार कानून लागू होते ही एमएसपी बंद कर दी जाएगी।  इसके साथ तमाम आशंकाओं से घिरे पंजाब और हरियाणा के किसान करीब एक माह से भी अधिक समय से दिल्ली बार्डर पर धरने पर डटे हुए है। 

क्या आपको मालूम हैं एमएसपी क्या है और देश के किस-किस प्रांत के किसानों को किन-किन फसलों पर इसका लाभ मिलता है

शायद आप को मीनिमम सपोट प्राइज (MSP ) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारें में पता हो भी या नहीं भी, लेकिन हम जो आप को बताने जा रहे हैं उसके मुताबिक मौजूदा समय में भारत के पास अनाज का अतिरक्त भंडारण है।  आंकड़ों पर भरोसा करें तो देश के पास ९.१ करोड टन अनाज का भंडारण है, जो देश के लोगों की आवश्यकता से करीब २५० प्रतिशत अधिक है।  इसके पीछे न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 


MSP सन १९७० और ८० के दौर में पंजाब और हरियाणा के किसानों को चावल और गेहूं उगाने के बदले फायदेमंद रिटर्न दे के मकसद से शुरू किया गया था।  इस योजना के अच्छे परिणाम मिलने शुरू हो गए। 

अब आप को बताते हैं MSP क्या है।  MSP वास्तव में वह मूल्य है जो किसानों की फसल की खरीद पर वर्ष में दो बार दिया जाता है।  पहला गेहं और दूसरा धान की खरीद पर पंजाब और हरियाणा के किसानों को इसका लाभ दिया जाता है।  जो धान या गेहूं की खरीद शुरू होने पर पहले सरकार द्वारा घोषित कर दी जाती है। 


सरकारी खरीद एजेंसी पनसप के एक अधिकारी के मुताबिक न्यूतम समर्थन मूल्य घोषित कर सरकार एक तरह से किसानों को यह गारंटी देती है कि इससे कम पर फसल की खरीद नहीं होगी, भले ही सरकार को फसल खरीदना पड़े। हलांकि MSP की यह व्यवस्था मौजूदा समय में गेहूं, चावल, जौ, मक्का, तीलहन, दलहन, कपास और गन्ना सहित कुल २३ फसलों पर लागू है।  इसमें फसलों की बुआइ से लेकर कटाई तक में लगने वाली मेहनत को शामिल कर एमएसपी तय की जाती है।

पंजाब और हरियाण व वहां के किसानों की खुशहाली में एमएपी का बहुत बड़ा रोल है।  यही कारण है कि इन दोनो ही राज्यों के किसान नए कृषि सुधार कानून लागू होने के बाद MSP खत्म किए जाने की आशंकाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे है।  हलांकि सरकार यह गारंटी के तौर पर लिख कर देने को भी तैयार है कि कानून लागू होने के बाद भी MSP को खत्म नहीं किया जाएगा।  किसानों का आंदोलन खत्म करने को लेकर कृषि मंत्री की किसान नेताओं के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है फिर भी गतिरोध वर्करार है। 


लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि MSP यह व्यवस्था देख की केवल पांच प्रतिशत किसानों पर ही लागू है, जिसका लाभ हरियाणा और पंजाब के किसानों को मिलता है।  ये पांच प्रतिशत किसान उन क्षेत्रों से संबंध रखते  है जो ' जय जवान, जय किसान' के नारों के साथ हरित क्रांति का इतिहास रचा था।   दूसरी ओर ९५ प्रतिशत वह किसान हैं जो जागरूकता की की कमी के कारण MSP का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। 


इन किसानों को नहीं मिलपाता लाभ

एमएसपी के दायरे से बाहर वो किसान हैं, जिनके पास औसतन दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है या फिर जिनके पास जमीन  नहीं है।  इस तरह के किसानों की संख्या लगभग ८६ प्रतिशत है। ये वो किसान हैं जो अपनी लागत के मुताबिक मुनाफी नहीं पाते।  ये किसान न तो सरप्लस अनाज उगा पाते हैं और न ही इनके पास ट्रांसपोर्ट आदि के पर्याप्त साधन व इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं।


एक और पहलू यह है कि पंजाब और हरियाणा से केंद्र सरकार फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत चावल और गेहूं की फसल का भंडार जुटाती है, जिसे  गरीबों तक लोक वितरण प्रणाली के तहत पांच रुपये प्रति किलो के रियायती मूल्य पर पहुंचाया जाता है। इससे होता यह है कि इस स्कीम से सस्ता अनाज मिलने  कारण इन प्रदेशों के किसानों को फसल की सही और अच्छी कीमत नहीं मिल पाती।