क्या सुजाता के खीर से मिला था बुद्ध को ज्ञान

दुर्गेश मिश्र

ध्यान की मुद्रा में पीपल के नीचे बैठे भगवान बुद्ध के हाथों में एक सोने का कटोरा और उनके चरणों के पास बैठी जो मिहला दिखती है, वह कोई और नहीं बल्कि सुजाता है।  यह वही सुजाता है जिसने भगवान  बुद्ध को बैसाख पूर्णिमा के दिन खीर खीर खिलाई थी।  और इसी दिन गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसकी तलाश में वह 14 वर्षों से भटक रहे थे।  शरीर को यातनाएं दे रहे थे।  उपवास रख रहे थे।   

      सुजाता को हम केवल बस उस महिला के रूप में जानते हैं, जिसने बुद्ध को खीर खिलाया था।  बौद्धकालीन सुजाता का योगदान बस इतना भर ही नहीं है।  सुजाता के खीर ने भगवान बुद्ध के जीवन को नई दिशा दी।  जिस हठयोग के बल पर सिद्धाथ उन अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़ राजकुमार से भिक्षु बन गए थे उन प्रश्नों का उत्तर सुजाता के खीर से मिल गया।  यह अन्वेषण और अनुसंधान का विषय हो सकता है ।  

  कठोर तप और हठयोग के कारण कृशकाय बुद्ध को खीर खिलाकर जीवन के प्रति संतुलित नजरिया दी थी। तभी तो उन्होंने मध्यम मार्ग चुना।  यानी जीवन की संगीत के लिए वीणा के तारों को इतना भी न कसो कि वह टूट जाए और इतना भी ढीला न छोड़ो कि उससे कोई स्वर न निकले।  

कौन थी सुजाता

बौद्धग्रंथों से लेकर सांची और भरहुत के तोरण और दीवारों पर उकेरी गई बुद्ध की जातक कथाओं में स्थानी पानें वाली सुजाता को बस हम इतना ही जानते हैं कि उसने जिस दिन भगवान बुद्ध को खीर खिलाई थी उसी बैशाखपूर्णिमा की रात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। सुजाता के जीवन और उसके अंत के संबंध में सायद ही लोगों को पता हो या लोगों ने जानने की कोशिश की हो। 

    बौद्ध कथाओं और ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सुजाता बोधगया के पास सेनानी गांव के ग्राम श्रेष्ठी अनाथपिंडिका की पुत्रवधु थी। स्वभाव से वह उद्दंड, चंचल और अहंकारी  स्वभाव की महिला थी। कहा जाता है कि सुजाता ने मनौती मान रखी थी कि उसे पुत्र होने पर वह  गांव के वृक्ष देवता को खीर चढ़ाएगी।  पुत्र की प्राप्ति के बाद उसने अपनी दासी पूर्णा को उस पीपल वृक्ष और उसके आसपास की जगह की सफाई के लिए भेजा जिसके नीचे बुद्ध ध्यान की मुद्रा में बैठे थे।  पूर्णा वृक्ष नीचे बैठे बुद्ध को वृक्ष देवता समझ बैठी और दौड़ती हुई अपनी स्वामिनी सुजाता को बुलाने गई। सुजाता ने वहां पहुंच कर ध्यान की मुद्रा में बैठे बुद्ध को सोने के कटोरे में खीर अर्पण कर कहा-‘जैसे मेरी पूरी हुई, आपकी भी मनोकामना पूर्ण हो। ’ हठयोग पर बैठे बुद्ध ने उरुवेला नदी में स्नान के बाद सुजाता का खीर ग्रहण कर अपना 49 दिन बाद अपना उपवास तोड़ा।  उसी दिन बुद्ध को लगा कि अति किसी भी वस्तु की ठीक नहीं । 

बुद्ध के उपदेश ने बदल दिया सुजाता का स्वभाव

बौद्ध साहित्य के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध आभार जताने के लिए एक दिन सुजाता के घर गए।  वहां घर में झगड़े का शोर था। पूछने पर सुजाता के ससुर अनाथपिंडक ने बताया कि उनकी बहुत झगड़ालू और अहंकारी स्वभाव की महिला है।  वह न तो अपने पति की सुनती है और ना ही सास-ससुर का कहा मानती है।  बुद्ध ने सुजाता को बुलाकर उसे सात प्रकार की पत्नियों के किस्से बताकर अपनी भूल का बोध कराया।  बोध होते ही सुजाता ने सबसे क्षमा मांगी।

बौद्ध भिक्षुणी बन गई सुजाता 

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सुजाता भगवान बुद्ध और उनके उपदेशों से इतना प्रभावित हुई कि वह अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में बौद्ध भिक्षुणी बन गई। ऐतिहासिक  साक्ष्यों और बौद्ध साहित्यों के अनुसार भिक्षुणी बनी सुजाता ने भगवान बुद्ध की मौजूदगी में वैशाली के निकट एक बौद्ध विहार में अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी।   बौद्ध ग्रन्थ ‘थेरीगाथा’ में बौद्ध-भिक्षुणियों के साथ भिक्षुणी सुजाता का भी उल्लेख आता है।