कमांडर शाम सिंह अटारी, सिख साम्राज्य का आखिरी स्तंभ

 

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'कमांडर शाम सिंह अटारी, सिख साम्राज्य का आखिरी स्तंभ' ।  यह पुस्तक शेर-ए-पंजाब के नाम से भारतीय इतिहास के पन्नों में महाराजा रणजीत सिंह के एक ऐसे सेनानायक की जीवनी पर आधारित है, जिसने अफगानों और अंग्रेजों के खिलाफ  अंतिम सांस तक जंग लड़ी। 

     शाम सिंह अटारी न केवल महाराजा रणजीत सिंह के सेनानायक थे, बल्कि वह महाराजा के समधी भी थे। यह पुस्तक कमांडर शाम सिंह अटारी के जीवन के उन उनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है, जिससे लोग अनभिज्ञ हैं।

'कमांडर शाम सिंह अटारी, सिख साम्राज्य का आखिरी स्तंभ' यह पुस्तक सन 1801 से 1846 तक के सिख साम्राज्य के संक्षिप्त इतिहास पर प्रकाश डालती है। कमांडर शाम सिंह अटारी पर हिंदी में लिखी यह पहली पुस्तक  है।  इसमें शाम सिंह की पारिवारिक पृष्ठिभूमि, राजपूताना से पंजाब में आकर बसने और फिर महाराजा रणजीत सिंह की सेना में एक सिपाही से कमांडर बनने तक का इतिहास तो है ही, इससे आगे महाराज का समधी बनने और 58 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ शहात पाने तक जंग लड़ने का विस्तृ उल्लेखे है।  लेखक दुर्गेश कुमार मिश्र की यह पहली पुस्तक पाठकों की उत्सुकता को बढ़ाते हुए अंत तक बांधे रखती है।  

     सात फरवरी से 10 फरवरी 1846 यानी चार दिन तक फिरोजपुर जिले के संभरावा में सिखों और अंग्रेजों के बीच हुए अंतिम युद्ध में  शाम सिंह अटारी में भाग लिया।  शाम अटारी ने यह युद्ध सेना की नौकरी और लाहौर दरबार की सियासत से खुद को लंबे समय तक दूर रखने के बाद  महारानी जिंद कौर के भावनात्मक पत्र मिलने जंग में मोर्चा संभाला था। शाम सिंह खोखली हो चुकी सिख साम्राज्य का वह मजबूत स्तंभ थे, जिनकी शहादत के बाद अंग्रेजों पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में पूरी तरह से मिला लिया। लेखकी दुर्गेश कुमार मिश्र की यह पुस्तक है।  'कमांडर शाम सिंह अटारी, सिख साम्राज्य का अंतिम स्तंभ' पाठकों को अंतिम समय तक बांधे रखती है।