1834 में लॉर्ड बैटिक ने भारत में शुरू की चाय पीने की परंपरा

 

चाय आज हर घर की जरूरत बन गई है।  चाय हमारी आदतों में ऐसा शुमार हो गया कि दिन की शुरूआत भी चाय से ही होती।  यहां तक कि यदि कुछ लोगों को चाय न मिले तो उनका सिर चकराने लगता है, लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में चाय पीने की परंपरा कब, क्यों और किसने शुरू की। तो आइए हम आपको बताते हैं।

 15 दिसंबर को विश्‍व चाय दिव मनाया है। इसकी आरंभ दुनिया के चाय उत्‍पादक देशों ने वर्ष 2005 अंतरराष्‍ट्रीय चाय दिवस मनाकर किया। पहला अंतरराष्‍ट्रीय चाय दिवस 2005 में दिल्‍ली में मनाया गया  इसके बाद यह दिवस हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में भी मनाया गया। 

इसके बाद से तो हर साल 15 दिसंबर को नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, केन्‍या, वियतनाम, तंजानिया और उगाला सहित दुयिनया के कई देशों में मनाया जाता है। चाय को इतना लोकप्रिय और जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय भारत के तत्‍कालीन गर्वरनर जनरल लार्ड विलियमबैंटिक को जाता है। क्‍योंकि उन्‍होंने 1834 में चाय पीने की परंपरा को शुरू करने की संभावना को तलाशने के लिए गए कमेटी का गठन किया था।

 

पहली बार 1819 में अंग्रेजों ने असम में देखी थी चाय

 

ब्रिटिश इंडिया के दौर में अंग्रेजों ने पहलीबार भारत के असम में झाड़ी नुमा पौधों को देखा था जिसकी पत्तिया उबाल कर स्‍थानीय लोग पीते थे।  लेकिन, इसे मुख्‍यरूप से अंग्रेजों ने 1854 में व्‍यापारिक तौर पर उत्‍पादन किया।  हलांकि 1835 में असम में चाय के बगान लगाए गए।

आज भारत दुनिया का 27 प्रतिशत उत्‍पान करता है।  जबकि चाय के निर्यात में भारत का 12 प्रतिशत से अधिक की हिस्‍सेदारी है।


ऐसा नहीं है कि चाय भारत में अंग्रेजों के आने से पहले पैदा नहीं होती थी।  असम के लोग चाय की पत्तियों को पहले से ही पानी में उबाल कर पीते थे, लेकिन चाय के महत्‍व का पता अंग्रेजों के आने पर ही चला। आज चाय पूरी दुनिया में लोकप्रिय है।  


चाय में मुख्य रूप से कैफीन पायी जाती है। इसकी ताजी पत्तियों में टैनिन की मात्रा 25.1% होती है. वही प्रोसेस्स पत्तियों में टैनिन की मात्रा 13.3% तक होती है। सबसे अच्छी चाय कलियो से बनायी जाती है। दुनिया मे चाय के उत्पादन मे भारत का पहला स्थान है।