महाराजा की यादों को संजोए राम बाग


दुर्गेश मिश्र

अमृतसर का रामबाग अर्थात कंपनी बाग काल के कपाल पर लिखी एक ऐसी ईबारत, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। शहर के मध्य स्थित यह बाग हर समय लोगों की मौजूदगी से आबाद रहता है। यही नहीं बडे-बडे छायादार व फलदार दरख्तों से भरे इस बाग में विभिन्न प्रजातियों के फूलों व उनके उपर मकरंद लेते भंवरें, फूलों के परागों का रस चूसती मधुमक्खिया व फूलों के आसपास मंडरातती रंगबिरंगी तिलियां और पछिंयों का कलरव हर प्रकृति प्रेमी को अपनी तरफ आकर्षित करता है, वहीं हवां के छोकों के साथ दूर तक फैली फूलों कीर सुगंध सांसों के जरिए तनमन में समा जाती है। या यूं कहें कि कंपनी बाग का शांत वातावरण किसी कवि या लेखक के लिए प्रेयसी से कम नहीं है। यदि कंपनी बाग का वर्तमान इतना संुदर है तो उसका अतीत कितना सुंदर रहा होगा, यह प्रत्येक प्रकृति प्रेमी के लिए सोचने, समझने का विषय हो सकता है। वहीं इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए यह अंवेषण या अनुसंधान का विषयवस्तु भी हो सकता है।


 

कभी महाराज रणजीत सिंह का समर पैलेस था रामबाग:ःः वर्तमान में 678 कनाल 12 मरले में आबाद कंपनी बाग की आधारशिला शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 में रखी थी। और इस बाग का नाम श्री गुरू रामदास जी के नाम पर रामबाग रखा था। इस बाक का रकबा 84 एकड था; कहा जाता है कि प्राकृतिक संुदरता से भरपूर इस बाग को महाराजा अपने गर्मियों के अवकाश के दौरान समर कैंप के रूप में प्रयोग करते थे। ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक इस बाग के निर्माण में उस समय 2.14 लाख रूपये खर्च किए गए थे। 



1.25 लाख से बना था समर पैलेस 

राम बाग के मध्य में नानक शाही ईटों व चूना प्लास्टर के मिश्रण से बने भव्य भवन को समर पैलेस के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि इस पैलेस के निर्माण में उस समय 1.25 लाख रूपये खर्च किए गए थे। तीन मंजिली इस इमारत के निर्माण में पच्चीकारी के साथ-साथ हवा व प्रकाश का भी उमदा प्रबंध किया गया था। 

राम बाग को बनाने में लगे थे 10 साल 

कंपनी बाग में बने महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा व म्यूजीयम के इंचार्ज रमन कुमार कहते हैं कि यदि ऐतिहासिक साक्ष्यों पर गौर करें तो आज इतना सुंदर दिखने वाले रामबाग के निर्माण में दस साल का समय लगा था। वे कहते हैं कि देसा सिंह मजीठिया व फकीर अजीजुददी की निगरानी में तैयार हुआ महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस अरबीयन वास्तु कला का उम्दा नमुना है। तीन मजील वाले समर पैलेस में एक तहखाना, ग्राउंड फ्लोर पर तीन कमरे व एक बड.ा हाल और मेहराबदार बरामदों से युक्त चार गैलरी है। जबकि उपरी मंजिल पर अद्भुत व अप्रतीम चित्रकारी की गई।  


803.72 स्क्वायर मीटर में है पैलेस 

कहा जाता है कि 1780 में लाहौर के गुजरा वाला में जन्मे महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 तक पंजाब के शासन की कमान संभाले रखी थी। उनके बारे में चरितार्थ है कि वह एक कुशल योद्धा, न्याय प्रीय शासक होने के साथ-साथ वास्तु व धर्म प्रेमी सम्राट भी थे। इसकी झलक कंपनीबाग में बने भव्य भवनों से मिलती है। महाराजा का समर पैलेस 90 बाई 90 फिट का वर्गाकार निर्माण है। परे समर पैलसे का निर्माण 803.72 स्क्वायर मीटर में है। इसके साथ ही साथ महाराजा का हमाम वारादरी सहित अन्य इमारतें स्थित हैं। कहा जाता है कि कंपनी बाग में कुल 8 बारादरी व चार वाचिंग टावर थे; इनमें से मात्र एक बारादरी बची है जो अपने पुराने स्वरूप को कायम रखे हुए है। 



सुरक्षा प्रबंधों का भी रखा गया था ध्यान 

 महाराजा के समर पैलेस का निर्माण करते समय उनके सुरक्षा प्रबंधों का भी पूरा ध्यान रखा गया था। क्योंकि वाचिंग टावरों अर्थात रामबाग के चारों तरफ सुरक्षा कर्मियों का रेजिडेंट था, इसके अतिरिक्त चारों तरफ 20 फुट चैड.ी और 14 फुट गहरी खाई खोदी गई थी। इससे एक तरफ जहां महाराजा के पैलेस की सुरक्षा किसी अभेद दुर्ग की तरह होती थी, वहीं इस चैड.ी खाई में भरे पानी को छुकर जब हवाएं चलती थीं तो समर पैलेस भयंकर गर्मी में भी कूल-कूल रहता था। यही नहीं इस पैलेस के चारों तरफ फूलों व फववारों की उत्तम व्यवस्था की गई थी। बताया जाता है कि उस समय महाराजा की सुरक्षा में लगे सैनिकों व सैन्य अधिकारियों के रहने लिए रामबाग के चारों तरफ आवाष बनाए गए थे। इतिहास के चढ.ाव उतार के बाद मौजूदा समय में न तो खाई बची है और ना ही सैनिकों के आवास। बचा है तो समर पैलेस, बुर्जियां, फववारा सिस्टम व राम बाग का भव्य मुख्य प्रवेषद्वार, जिसमें कभी महाराजा के सिपाहसालार बैठते थे, लेकिन अब इसमें सर्वे आफ आक्र्योलाजिकल विभाग का जोनल कार्यालय है। 


रामबाग ऐसे बना कंपनी बाग 

कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह साल में 9 माह तत्कालीन पंजाब की राजधानी लाहौर में रहते थे और बाकी के तीन माह श्री हरिमंदिर साहिब के दर्षन व अमृतसर के लोगों के बीच इसी रामबाग में बने समर पैलेस में रहते थे। उस समय उनकी कचहरी और दरबार भी यहीं लगा करता था और यहीं से वह कई महत्वपूर्ण फैसले भी लिया करते थे। लेकिन महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु व सिख एंग्लो युद्ध के बाद इस्टइंडिया कंपनी की अंग्रेजी हुकुमत ने रामबाग का नाम बदल कर कंपनी बाग कर दिया और तब से रामबाग कंपनी बाग के नाम से जाना जाने लगा। कहा तो यहां तक जाता है कि अमृतसर जिला बनने बाद अंग्रेजों ने अपनी पहली कचहरी समर पैलेस में ही लगाई थी।

2004 से भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है रामबाग

  लगभग 21 साल तक महाराजा रणजीत सिंह की प्रषासनिक गतिविधियों का केंद्र व लगभग दो षदी के इतिहास का गवाह रहे रामबाग को 15 अक्तूबर 2014 को तत्कालीन भारत सरकार ने भारीय पुरातत्व विभाग को सौंप दिया। वर्तमान में महाराजा के समर पैलेस व रामबाग को पंजाब टुरिज्म विभाग और पुरातत्व विभाग सजाने-संवारने में जुटा है, ताकि देसी व विदेसी पर्य टकों को षेर-ए-पंजाब के इसतिहास से रू-ब-रू करवाया जा सके। 

1977 में संग्रहालय बना समर पैलेस

महाराजा रणजीत सिंह म्यूजीयम के इंचार्ज रमन कुमार व पंजाब दुरिज्म विभाग के सह निदेषक बलराज सिंह कहते हैं कि सन 1977 में समर पैलेस को संग्रहालय का रूप दिया गया। इसमें माहाराजा से जुड.ी वस्तुओं को संग्रह कर लोगों की ऐतिहासिक जानकारी के लिए प्रदर्षित किया गया, लेकिन इस पैलसे के जिर्णेाधार के कारण फिलहाल यहां कि महत्वपूर्ण वस्तुओं को महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा में रखा गया है। जहां से सैकड.ों पर्यटक इन वस्तुओं को देखने आते हैं। वे कहते हैं कि इससे पहले यह पैलेस नगर निगम का कार्यालय हुआ था। 


यह भी देखें

क्ंपनी बाग व इसके आसपास बनी षाही इमारतंे सिख इतिहास की कहानी कहते नहीं थकतीं। षायद वह यह बताने की कोषिष करती हैं कि उनका अतीत भी उतना ही गौरवान्वित है, जितना कि वर्तमान। सिख षासन से लेकर वर्तानवी हुकूमत का केंद्र रहे रामबाग में एक पैनोरमा भी बनाया गया है, जिसमें महाराजा के इतिहास के जुड.ी सभी वस्तुओं को जतन के साथ रखा गया है, यही नहीं यहां लाइट व साउंड के माध्यम ष ष से सिख इतिहास को दिखाने व बताने की कोषिष की जाती है। पंजाब की इसी धरोहर को देखने प्रतिदिन सौ से अधिक सैलानी कंपनी बाग पहुंचते हैं।