सावन में शिवमय हो जाती है काशी

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दुर्गेश मिश्र

भगवान शिव के त्रिशूल और पतितपावनी मां गंगा की गोद में बसी काशी सावन में शिवमय हो जाती है।  काशी और काशी विश्वनाथ में लोगों की आस्था इतनी है कि यहां के कंकर-कंकर में भक्तों को शंकर नजर आते है। वैदिक मंत्रों और अजान के समवेत स्वरों से काशी की सुबह होती है।  तभी तो कहा जाता है कि जिसने सुबह-ए-बनारस नहीं देखा उसने कुछ नहीं देखा। 

 84 घाटों वाला यह अध्यात्मिक नगर पौराणिक और प्रचानी नगरों में से एक है।  काशी का उल्लेख हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मग्रंथों में भी मिलता है।  यहां तक की पुराणों से लेकर रामायण और महाभारत में भी काशी नगरी का उल्लेख किया है।  एक अनुमान के मुताबिक काशी में दस हजार से अधिक मंदिर और शिवालय है।  यहां 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग स्थापित है, जिसे देश और दुनिया बाबा विश्वना के नाम से जानती है।  कहा तो यह भी जाता है इस नगरी में बाबा विश्वनाथ की इतनी कृपा है कि यहां कोई भूखेपेट नहीं सोता। 

33 करोड़ देवी देवताओं का वास है काशी में

वरुणा और 80 के संगम पर बसे काशी के बारे में कहा जाता है कि यहां 33 करोड़ देवी देवता वास करते हैं। यह भी कहा जाता है कि स्वर्ग से भी न्यारी इस नगरी काशी को भगवान भोलेनाथ ने अखिल ब्रह्मांड के रूप में बसाया है।    काशी एक मात्र ऐसी नगरी है, जहां नौ गौरी देवी, नौ दुर्गा, अष्ट भैरव, 56 विनायक और 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। इसके अलावा बाबा भोलेनाथ काशी के लोगों के कुल देवता है, जिस कारण यहां घर-घर में  शंकर विराजमान हैं।  

सावन की सोमारी को उमड़ता है आस्था का सावन 

वैसे तो काशी यानी वाराणसी में साल के बारहो मास श्रद्धालुओं और सालानियों का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन में शिवभक्तों को सैलानियों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।  गांगा से जल लेकर भगवान काशीविश्वनाथ पर चढ़ाने वाले कांवड़ियों से पूरी काशी खचाखच भरी रहती है।  लेकिन सावन की सोमारी (सोमवार ) की बात ही कुछ और होती है।  सोमवारी की रात में अध्यात्म, इतिहास, साहित्य, गीत-संगीत, कला और शास्त्रार्थ का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।  काशी का कोई भी ऐसा चौक-चौराहा, मंदिर-शिवाला नहीं होगा जहां साहित्य और कला मंच न सजा हो।  उपर से सावन की फुहार।  ऐसा लगता है जैसे जल की नहीं बल्कि अमृत की बूंदे टपक रहीं हो।  ऐसे में क्या मजाल की साहित और गीत-संगीत आ आनंद लेने वाले टस से मस हो जाएं । यह तो है काशी पहचान जो युगों-युगों से अपने आत्मसात किए हुए काशाी नगरी अपनी अनुपम छंटा विखेर रही है।