कांशीराम के 'घर' में ही नहीं है बसपा की 'पहचान'


दुर्गेश मिश्र 
 जिस बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो कुमारी मायावती उत्‍तर प्रदेश की राजनीति की धुरी बनी हुई हैं उसी पार्टी को कांशी राम के घर अर्थात पंजाब में जमीन तलाशनी पड़ रही है।  सियासत के शिलालेख पर लिखी यह बात इसलिए भी महत्‍वपूर्ण हो जाती है क्‍यों कि बसपा के संस्‍थापक कांशीराम जिन्‍हे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता साहिब के नाम से जानते हैं का पुश्‍तैनी घर पंजाब के रोपड़ जिले के गांव ख्‍वासपुर में है। इसी ख्‍वासपुर की माटी में 15 मार्च 1934 को जन्‍मे मान्‍यवर कांशी राम ने 1971 में डीआरडीओ की सरकारी नौकरी छोड़ कर 14 अक्‍टूबर 1971 को अपना पहला संगठन 'शिड्यूलकास्‍ट, शिड्यूल ड्राइव अदार बैकवर्ड क्‍लासेज एंड माइनॉरिटी एंप्‍लाइज वेल्‍फेयर एसोसिएशन का गठन किया था और इसे नाम दिया डीएस-4, मतलब दलित, शोशित संघर्ष समाज समिति।
  लोक सभा चुनाव 2019 की रणभेरी बजते ही सियात के समर में राजनीतिक दलों की सेनाएं सज गई है। किसी के सेनापति तैयार हैं  तो किसी दल को सेनापति की तलाश है। यनी चुनावी शतरंज में शहमात का खेल जारी है। उत्‍तर प्रदेश में जहां कांग्रेस की डुबती नैया के नए खेवनहार बन कर प्रियंका बढेरा गांधी रण में ताल ठोक रहीं हैं, वहीं बसा सुप्रिमो मायावती अपने सभी गिले-शिकवे भूल समाजवादी पार्टी के साथ अपने खोए हुए वजूद को बचाने की कोशिश कर रहीं हैं। अपनी राजनीतिक शाख को बचाने की जद्दोजहद में मायावती साहिब (कांशी राम) की 'रियासत' पंजाब को भूल गई हैं। जहां डीएस-4 (अब बहुजन समाज पार्टी) के गठन के 49 साल बाद भी पार्टी जमीन और सम्‍मान तलाश रही हो वह जमीन उसे उत्‍तर प्रदेश में मिली। यह बात दिगर रही कि 1992 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी को 9 सिटें मिली। और इसी पंजाब से  एक मात्र मान्‍यवर कांशीराम को 1996 में  संसद के दहलीज तक पहुंचने का मौका। इसके बाद पार्टी का वोट बैंक ऐसा खिसका कि आज तक संभल नहीं पाया। इसे पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व की कमी मानी जाय या फिर दिनोंदिन पंजाब के लोगों में खोता जनाधार। 
32 प्रतिशत दलित वोटर्स को साथ नहीं जोड़ पा रही बसपा
पंजाब की कुल आबादी की लगभग 32 प्रतिशत आबादी दलित है, फिर भी बहुजन समाज पार्टी के पंजाब इकाई के नेता इसे अपने साथ जोड़ पाने में असफल साबित हो रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अवतार सिंह करीमपुरी को पार्टी का प्रदेश अध्‍यक्ष और उत्‍तर प्रदेश से राज्‍य राज्‍य सभा का सदस्‍य बना कर उच्‍च सदन तक जरूर पहुंचाया लेकिन वे  पंजाब में संगठन को मजबूत करने में कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पाए। और नहीं प्रदेश को कोई ऐसा बड़ा दलित नेता खड़ा कर पाए जो पार्टी को उसकी जमीन दिला पाए। जबकि इसके बिपरित भाजपा में केंद्रीय मंत्री विजय सांप और सूफी गायक हंसराज हंस जैसे दलित चेहरा हैं तो अकाली ओर कांग्रेस में कई ऐसे दलित नेता हैं, जिनकी प्रदेश स्‍तर पर पहचना है।
बसपा के स्‍वर्णिम युग था 1992 का दौर
सियासत के जानकारों का कहना है कि पंजाब में 1992 का दौर बहुजन समाज पार्टी के लिए स्‍वर्णिम दौर था। इसी साल हुए विधान सभा के चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत 16.33 प्रतिशत के करीब रहा। प्रदेश की कुल 117 सदस्‍यों वाली विधान सभा में बसपा ने 9 सिटों पर जीत दर्ज कराई थी। लोक सभा के चुनाव में पार्टी को 19.72 प्रतिशत वोट मिला और 1996 में लोक सभा की आरक्षित सीट होशियारपुर से कांशी राम सांसद चुने गए। यदि बात करें वोट प्रतिशत की तो वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में पार्टी का 1.92 प्रतिशत गिरा। 2002 में हुए विधान चुनाव में वोट बैंक खिसक गया और 2012 के विधान सभा चुनाव में तो वोट प्रतिशत घट कर 4.28 प्रतिशत प्रहुंच गया। इसके बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। पार्टी के संस्‍थापक कांशी राम के राज्‍य में ही पार्टी को अपना वोट बैंक और अस्तित्‍व बचाने की जंग लड़नी पड़ रही है। 
कालियों ने चुनाव नहीं लडा इसलिए मिली 9 सिटें
राजनीति में मझे कुछ लोगों का कहना है 1992 का दौर बसपा के लिए कोई स्‍वर्णिम दौर नहीं था। पंजाब में उसे 9 सिटें इस लिए मिल गईं कि उस समय अकालियां ने चुनाव का वहिष्‍कार करते हुए किसी भी सीट से अपने प्रत्‍याशी नहीं उतारे थे। तब पंजाब आतंकवाद के दौर से गुजर रहा था। उस समय जेल में बंद आतंकियों के रिश्‍तेदार भी चुनाव मैदान में थे, लेकिन चुनाव आयोग ने उस समय चुनाव ही रद्द कर दिया। इसके बाद हुए पंजाब विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की भारी जीत हुई थी और बेअंत सिंह ने मुख्‍यमंत्री के रूप में पंजाब की सत्‍ता की कमान संभाली और पंजाब को आतंकवाद मुक्‍त करवाने में मुख्‍य भूमिका निभाई थी।
जीत का दावा , संगठन को सहेजने की चुनौती  
यह पूछे जाने पर कि पंजाब में बसपसा को जमीन तलाशने की नौबत क्‍योंं आन पड़ी। इसपर राज्‍य सभा के पूर्व सदस्‍य और बसपा के पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष अवतार सिंह करीमपुरी  कहते हैं कि इस समय मैं हिमाचल प्रदेश का प्रभारी हूं। यह बात आप पंजब प्रभारी और वहां के प्रदेश अध्‍यक्ष से पूछें तो बेहतर रहेगा। वहीं पार्टी के पंजाब प्रभारी रंधीर सिंह बैनी पाल कहते हैं कि ग्राउंड लेबल पर काम हुआ है। युवाओं को पार्टी से जोड़ा जा रहा है।  हम लोक सभा की तीन सीटों पर जीत दर्ज करेंगे।  हमतो अभी करीब दो माह पहले प्रदेश भारी के तौर पर आए हैं। पंजाब में हमारा डेमोक्रेटिक अलाइंस के साथ समझौता हुआ है।  इसमे आम आदमी पार्टी से अलग होकर बनी सुखपाल सिंह खैहरा की पंजाब एकता पार्टी, बैंस ब्रदर्स की लोक इंसाफ पार्टी और 'आप' से ही अलग हो कर पटियाला से सांसद धर्मवीर गांधी की पंजाब निर्माण मोर्चा, सीपीआई  साथ मिल कर हम तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
दोष मीडिया पर
बाबू कांशीराम के पंजाब में बसपा का जनाधार खिसकने का दोष पार्टी के कुछ नेता मीडिया पर मढ़ रहे हैं। इन नेताओं का कहना है कि मीडिया उनकी पार्टी को महत्‍व नहीं दे रही । पूर्व में बसपा के कई लीडर कांग्रेस, अकाली और भाजपा में जा चुके हैं। यह पूछे जाने पर कि इन नेताओं ने ऐसा क्‍यों किया के जवाब में पार्टी नेताओं का कहना है कि ये लोग मौका परस्‍त थे जो केवल अपने स्‍वार्थ के लिए बसपा में आए थे। कुछ संगठन की भी कमी रही है, लेकिन अब समय बदल चुका है। ग्राउंड लेबल पर काम हुआ है। नई पीढ़ी काम कर रही है, लेकिन मीडिया को नहीं दिख रहा है।  मीडिया बसपा को कवरेज नहीं करती। सोशल  मीडिया पर प्रचार हो रहा है। पंजाब डेमोक्रेटक अलाइंस के साथ मिल कर हम पंजाब की तीन लोक सभा सीट ' जालंधर, होशियारपुर और आनंदपुर साहिब' से चुनाव लड़ रहे हैं और इन सभी तीनों सीटों पर जीत दर्ज करेंगे। उल्‍लेखनीय है होशियारपुर लोक सभा सीट से ही बसपा के संस्‍थापक कांशी राम ने चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी,  लेकिन दूसरी बार वह यह करिश्‍मा नहीं दिखापाए और यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी। मौजूदा समय में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के विजय सांपला सांसद हैं। हलांकि इसबार इसबार इनका टिकट कटने का कयास लगाया जा रहा है। 
पंजाब में ही नहीं है साहिब की निशानी
22 जिलों और 13 लोकसभा सीटों वाले पंजाब के रोपड़ जिले के गांव ख्‍वासपुर में जन्‍मे बसपा के संस्‍थापक कांशी राम की एक भी निशानी नहीं है। कांशी राम की स्‍मृति के तौर पर इनके गांव में एक मूर्ती जरूर स्‍थापित है। साहिब की विशाल विरासत को संभाल रहीं मायावती 3 जून 1995 को पहली बार मुख्‍यमंत्री के रूप में उत्‍तर प्रदेश की कमान संभाली थी। यही नहीं वे पंजाब से भी लोक सभा का चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन उसमें सफल नहीं हुईं। मायावती ने बेशक उत्‍तर प्रदेश में कांशी राम के साथ-साथ अपन भी मूर्ती लगा कर दलितों का मसिहा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन उन्‍होंने पंजाब में पार्टी की जड़ों को मजबूत करने की तरफ कोई ध्‍यान नहीं दिया। यहां तक कि कांशीराम का नारा-' ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़ बाकी सब हैं डीएस-4 , जिससे 1990 के दौर में पार्टी परवान चढ़ी थी उसको तिलांजलि दे इन्‍हीं ठाकुर, ब्राह्मण और बानिया की अंगुली पकड़ कर चलने की कोशिश कर रहीं हैं।