आनंद मैं थक गया हूं...। ( Budh purnima special )


Budh purnima special आनंद मैं थक गया हूं...।  इन दो साल्व वृक्षों के बीच उत्तर की ओर सिरहाना करे बिछौना बिछाओ।  जरा आराम करूंगा।  यह अंतिम शब्द थे तथागत भगवान बुद्ध के जो उन्होंने निवार्ण प्राप्ति से पहले कुशीनगर में कहा था। किसी जमाने में 16 महाजनपदों में से एक रहा कुशीनगर वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक  जनपद है, लेकिन यह  स्थल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए किसी काबा से कम नहीं है।  पुरातात्विक महत्व के इस स्थल का संबंध तथागत भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित उन तीन (जन्म, ज्ञान और मृत्यु)  महत्वपर्ण स्थलों में है, जहां तथागत ने निवार्ण प्राप्त किया था ।

रामायण से भी कुशी नगर का संबंध

आम तौर पर बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक कुशी नगर को भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल के रूप में जाना जाता है।  लेकिन, कुशीनगर का संबंध भगवान श्री राम और उनके पुत्र कुश से भी है।  कुशी नगर का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भी किया है।  रामयण के अनुसार त्रेतायुग में यह नगर भगवान श्री राम के पुत्र कुश की राजधानी थी, जिसके चलते इसे 'कुशावती' के  नाम से जाना जाता था।  

वहीं,  पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार बुद्ध काल में यह 16 महा जनपदों में से एक मल्ल राजाओं की राजधानी कुशीनारा के नाम से जानी जाती थी।  इतिहासकारों के मुताबिक ईसापूर्व पांचवी शताब्दी के अंत में भगवान बुद्ध कुशी नगर आए थे। कुशीनगर ही वह स्थान है जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष में अपना आखिरी अपदेश दिया था और मल्लों की इसी राजधानी में दो साल्व वृक्षों के नीचे निवर्ण को प्राप्त हुए थे।

भगवान बुद्ध ने दिया था अंतिम उपदेश ( Budh purnima special )

विभिन्न नगरों और बौद्ध विहारों को अपने प्रकाश पुंज से आछादित करते हुए तथागत भगवान बुद्ध 80 वर्ष की अवस्था में कुशी नगर पहुंचे थे। वौद्ध धर्मावलंबियों में वैशाख पूर्णिमा का खासा महत्व है।  क्योंकि इसी दिन सिद्धार्थ गौतम का जन्म, ज्ञान और निर्वाण हुआ था।  इसी वैशाख माह में भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ विहार करते हुए कुशी नगर पहुंचे थे।  बौद्ध साहित्यों के अनुसार कुशीनगर के एक लुहार चुंद ने अपने यहां भगवान बुद्ध को भोजन के लिए आमंत्रित किया। चुंद के यहां भोजन करने के बाद भगवान बुद्ध अस्वस्थ हो गए। उन्हें मार्णांतक पीड़ा होने लगी। अंतत: उन्होंने कुशी नगर में ही वैशाख पूर्णिमा के दिन निर्वाण प्राप्त किया। लेकिन, इससे पहले उन्होंने अपने शिष्यों को जो उपदेश दिया वह आज भी अनुकरणीय है।

तुम अपना दीप आप बनो

आनंद मेरी जीवन यात्रा समाप्त होने को है।   अब मैं बुढ़ा हो गया हूं।  मेरी उम्र हो गई।  अत: हे आनंद तुम अपना दीप खुद बनो।  आत्म निर्भर बनो आनंद, मैंने तुम्हे पहले ही बतलाया  है कि हमें अपनी प्रीय वस्तुओं से अलग होना ही है।  फिर आनंद मेरा रहना किस तरह संभव है।  आनंद के नेत्रों से अश्रुधारा निरंतर बहती जा रही थी। 

 तथागत ने फिर कहा आनंद, जन्म लेनेवाली, अस्तित्वमान प्रत्येक वस्तु में नाश होना जुड़ा रहता है।  अलग होना इसका स्वभाव है,  फिर भला मै अकेला ही इसका अपवाद कैस हो सकता हूं।  अत:  आनंद शोक नहीं करते।  बस आनंद रोओ मत, शोक मत करो।  आनंद जिसका धर्म ही पृथक होना है, यह भला किस तरह संभव है कि वह अलग न हों।  

  आनंद ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से बुद्ध से कहा  ''आपके जाने के बाद हमें कौन शिक्षा देगा?''  बुद्ध ने कहा  'आनंद मैं इस धरती पर पहला और अंतिम बुद्ध नहीं हूं।  सही समय पर एक और बुद्ध अवतरित होंगे।  वह तुम्हें धर्मोपदेश देंगे।  बुद्ध के निर्वाण की सूचना मिलते ही कुशीनगर के मल्ल, बौद्ध भिक्षु व नगर के लोग आने लगे, वैशाख पूर्णिमा का अंतिम प्रहर यानी निर्वाण का समय नजदीक आ रहा था।  जीवन के अंतीम समय में बुद्ध ने कहा- '' भिक्षुओं मैं तुमसे कहता हूं कि समस्त संयोगजन्य वस्तुएं क्षयशील हैं।  अत: प्रत्येक को सावधान चित्त से अपना-अपना कतर्व्य करते रहना चाहिए।

सिद्धार्थ  ग़ाज़ीपुर