दुर्गेश मिश्र
शारदीय नवरात्र शुरू होने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में कहीं रामलीला
का मंचन शुरू हो गया है तो कहीं तैयारियां चल रही हैं जो नवरात्र के पहले दिन यानी
22 सितंबर से आरंभ हो जाएंगी। इसके लिए जोरशोर से रिहर्सल चल रहा है।
विश्वनाथ मंदिर
भगतांवाला के प्रमुख आत्मा नंद शास्त्री कहते हैं कि रामलीला का शाब्दिक अर्थ होता
है ' राम की लीला या नाटक' । राम लीला का मंचन मुख्य रूप से तीन तरह से किया जाता है। चल, अचल और मंच पर। आत्म प्रकाश शास्त्री कहते हैं कि रामलीला महर्षि वाल्मीकि
जी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण या गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित पर की जाती है,
जो नवरात्रि के वार्षिक शरद उत्सव के दौरान मंचित की जाती है। वे कहते
हैं कि श्री रामचरित मानस एक पद्य रूप में रचना है। इन छंदों का उपयोग पारंपरिक रूपांतरों
में संवाद के रूप में किया जाता है। वैसे तो रामायण की कई भारतीय भाषाओं सहित विदेशी
भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है और देश-स्थान के मुताबिक लामलीला का मंचन किया जाता
है।
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से सेवानिवृत्त प्रो.डा. हरिश शर्मा कहते हैं रामलीला का मंचन सर्व प्रथम कहां से और कबसे आरंभ हुआ कहा नहीं जा सकता। लेकिन एलोरा के 8वीं शदी के गुफा नं. 16 पर उकेरी गईं रामायण की कलाकृतियां उस समय के भारतीय समाज में इसके महत्व को दर्शाती हैं। डा. हरिश कहते हैं कि रामलीला को वर्ष 2008 में यूनेस्को की सूचि में भी शामिल किया जा चुका है।
180 मिनट में दिखानी होती है पूरी रामलीला-
सारथी कला मंच के संस्थापक चंचल कहते हैं हमें बिना पर्दा गिराए 180 मिनट यानी तीन घंटे से श्रीराम जन्म से रावण वध तक की लीला दिखानी होती है। तीन घंटे की यह पूरी रामलीला लाइट एंड साउंड पर आधारित होती है। चंचल दावा करते हैं कि यह पंजाब की इकलौती ऐसी रामलीला है जो इतने कम समय में पूरी रामलीला का मंचन करती है। इस रामलीला में कलाकार बोलने का केवल अभिनय करते हैं, जबकि बैकग्राउंड में सीन से हिसाब से संवाद चलता और उसी के अनुरूप वहां कि प्रकाश की व्यवस्था होती है।
स्थानीय लेखकों ने तैयार किए हैं पटकथा और संवाद
चंचल कहते हैं कि रामलीला महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण या गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित पर की जाती है। श्री रामचरित मानस एक पद्य रूप में रचना है। मानस के इन छंदों का उपयोग पारंपरिक रूपांतरों में संवाद के रूप में किया जाता है। वैसे तो रामायण की कई भारतीय भाषाओं सहित विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है और देश-स्थान के मुताबिक लामलीला का मंचन किया जाता है। लेकिन, सारथी कला मंच के संवाद को रामाण और रामचरित मानस के गहन अध्ययन के बाद दोहों, चौपाइयों, छंदों और श्लोकों को आधार मान कर पंजाबी फिल्मों के पटकथा लेखकों और साहित्यकारों ने मिलकर लिखा है। दूसरे शब्दों में कहें तो 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता। यानि भगवान अनंत है और उनकी कथा भी अनंत है जिसे लोग अपने-अपने विधि से कहते और सुनते हैं।
अमृतसर की स्टूडियो में हुई है संवादों की रिकॉर्डिंग
सारथी कला मंच के पदाधिकारी परमिंदर गोल्डी, अमन कुमार और चरुण चावला कहते हैं कि रामलीला के सभी पात्रों के संवादों की रिकॉर्डिंग अमृतसर के पप्पू स्टूडियो में हुई है। इसमें श्रीराम, लक्ष्मण, सीता सहित सभी नायकों की आवाज निंपा और सारथी कला मंच के कलाकारों की है।
रामलीला मंचन की विधा दूसरे मंचों से भिन्न
सारथी कला मंच के रामलीला मंचन कि विधा अन्य मंचों से भिन्न है। रामलीला मंचन के लिए न तो टेंट की आवश्यकता होती है और ना हीं पर्दा आदि की। रामलीला मंचन के लिए तीन या चार स्टेज बनाए जाते हैं। इन मंचों पर दृश्यों के अनुसार कलाकार आकर बैठते हैं। मंच निर्देश का संकेत मिलते हैं पार्श्व में साउंड बजता है और मंच पर बैठे कलाकार संवाद बोलने का अभिनय करते हैं। दृश्यों के अनुसार प्रकाश व्यवस्था होती है और गीत और संगीत उसकी के अनुसार चलते हैं। यह संपूर्ण रामलीला मात्र तीन घंटे की होती है। जो दशहरा के दिन तक चलती है।
चंचल कहते हैं कि हमारी निष्काम सेवा है। सारथी कला मंच पंजाब सहित अन्य प्रदेशों में भी
20 से अधिक रामलीला का मंचन कर चुका है। इस
वर्ष अमृतसर में दुर्ग्याणा तीर्थ के ओपन थिएटर में 22 सितंबर से दो अक्टूबर यानी दशहरा
तक रामलीला का मंच करेंगे।
45 लोगों को समूह, इनमें 6 महिलाएं भी
सारथी कला मंच में 45 लोगों का समूह है। इनमें छह महिलाएं भी शामिल है। इन सदस्यों में कोई पंजाब पुलिस में है तो कोई विभिन्न सरकारी आदारों में कुछ कारोबारी भी शामिल है। इनमें निर्देश, तकनीसियन और अभिनेता और अभिनेत्रियां भी है। परमिंदर गोल्डी बताते हैं कि यह पूरी टीम निश्शुल्क सेवा देती है।
श्रीराम नाम की अलख जगाता है मंच
चंचल कहते हैं आज से करीब 26-27 साल पहले गुरुशरण सिंह बब्बर
ने निंपा (नेशनल इंट्रोडेशन आर्टिस्ट एसोसिएशन)
की नींव रखी थी। निंपा का मुख्य उद्देश्य रामनाम
की
अलख जगाना था। चंचल कहते हैं कि वे निंपा से 16 साल तक जुड़े रहे। गुरुशरण सिंह के निधन के बाद सारथी कला मंच का गठन
किया गया और गुरु शरण सिंह के दिखाए मार्ग पर चलते हुए निष्काम सेवाभाव से रामलीला
का निश्शुल्क मंचन किया जाता है।